आया खेलने खेल,
देख तमाशा कैसा है,
कर्म-भोग का मेल।
कर्म-भोग का मेल,
ना बाधा डालो उस में,
करने दो,भरने दो,
जो बोया है जिस ने।
“पाठक” की है विनय,
दुर्लभ मानव जीवन,
सत्य,अहिंसा,आत्मज्ञान,
से मिले मोक्ष धन।
डॉ० केवलकृष्ण पाठक
सम्पादक
‘रवीन्द्र ज्योति’ मासिक पत्रिका
आनन्द निवास, गीता कालोनी,
जींद (हरियाणा) 126102