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दरोगा जी, चोरी हो गई


मुरारी की साइकिल चोरी हो गई बाजार से। मुरारी थाने गया रिपोर्ट लिखाने।हाथ में तहरीर देखकर दरोगा ने मुरारी को घूर कर देखा फिर हड़काते हुए पूछा-क्या है?
इतना सुनते ही मुरारी की हलक सूख गई।जैसे-तैसे लार गटकते हुए कहा साहब साइकिल चोरी हो गई।
दरोगा ने डाँटते हुए कहा ,तो चोरी हो गई, हम क्या करें?चोर तेरी साइकिल लेकर क्या थाने में बैठा है ?,,कैसे चोरी हो गई तेरी साइकिल, तू कहाँ था? 
 साहब हम सब्जी ले रहे थे।सब्जी लेकर वापस मुड़कर देखा साइकिल गायब थी।,,
अच्छा यह बता साइकिल लेकर सब्जी लेने क्यों गया तू,,, 
साहब गाँव दूर है इस लिए साइकिल से आए थे।,,
साइकिल की रसीद है या नहीं।,
मुरारी सिर हिलाते हुए कहा नहीं साहब।,, 
तब तो साइकिल तेरे पास चोरी की थी।,,,
मुरारी के पैर कांपने लगे हाथ जोड़कर कहा नहीं साहब साइकिल मेरी थी, चोरी की नहीं।
दरोगा ने घूरते हुए गुर्रा कर कहा तो रसीद क्यों नहीं है तेरे पास।
मुरारी ने कहा साहब साइकिल पिता जी ने खरीदी थी।,, 
 अच्छा पिता जी ने खरीदी थी, तो पिता जी को लेकर आओ रसीद सहित दरोगा ने कहा।
मुरारी ने फिर हाँथ जोड़कर कहा साहब पिता जी नहीं हैं। 
 दरोगा ने घूरते हुए कहा, कहाँ गए तेरे पिता जी।,,
साहब वह अब इस दुनियां में नहीं है।दरोगा ने कहा पिता जी दुनिया मे नहीं है ,तो क्या रसीद भी साथ लेकर गए हैं।,,
मुरारी ने सूखी जीभ को दो तीन बार मुँह में इधर उधर टहलाया फिर बड़ी मुश्किल से कहा साहब, पिता जी बताकर नहीं गए कि रसीद कहाँ रखी है। 
 कड़बी मुस्कान बिखेरते हुए दरोगा बोला, जब रसीद नहीं दे गए, तो बिना रसीद की साइकिल लेकर घूमना तो जुर्म है।इस अपराध में तुमको ही अंदर कर देते हैं। 
 मुरारी इतना सुनते ही गिड़गिड़ाकर बोला साहब, हमें रिपोर्ट नहीं लिखानी है ,लेकिन मुझे अंदर न करो।हम गलती मानते हैं साहब कि हम बिना रसीद के साइकिल को लेकर घूम रहे थे।साहब सब्जी लेने आए थे, घर पर मेहमान आए हैं ,हमे जाने दो साहब ,गाँव दूर है, ।अब पैदल ही जाना होगा।कहीं अंधेरा हो गया तो रास्ते में कोई रहजन मिल गया ,तो सब्जी भी ले जाएगा साहब।,, 
 ठीक है, दोबारा साइकिल की चोरी की रिपोर्ट लिखाने मत आ जाना बिना रसीद के, नहीं तो इस बार छोड़ रहे हैं,अगली बार साइकिल की चोरी के जुर्म में तुमको ही अंदर कर देंगे समझे, और हाँ, साइकिल चोरी हो गई इस बात की चर्चा किसी से मत कर देना नहीं तो ,हम से बुरा फिर कोई नहीं होगा समझे।फूट लो फटा फट और इस कागज़ को फाड़कर फेंको।
मुरारी ने कागज को फाड़कर फेंका और नमस्ते साहब कहकर थाने से रुखसत ली।
मुरारी का दिल धक धक धक धक तेजी से धड़क रहा था।थाने से बाहर आकर सोचने लगा साइकिल जाए भाड़ में बच गए अंदर होने से।

रामबाबू शुक्ला
पुवायां
शाहज़हांपुर, उत्तर प्रदेश