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सरलता श्रेष्ठ क्रूरता व्यर्थ


स्नेह का विनिमय बड़ा विचित्र
प्रेम की व्याख्या यहां सचित्र।
दो पृथक- पृथक लघु बालरूप
सभी में ईश्वर अंश अकूत ‌।

देखते लुप्त हुए अवसाद।
हृदय का भोज्य स्नेह -संवाद।।
पूर्ण नैसर्गिक यह उद्गार।
तप्त पर निर्झर बूंद -फुहार।।

प्रेम की भाषा अपरम्पार।
बरसती करुणा मेघाकार।
प्रेम का ऐसा ही व्यवहार
ग्रीष्म में शीतल मंद बयार।।

तव जननी का कर दुग्ध- पान
हम मनुज हुए हैं पुष्ट प्राण।
किस भांति करें आभार व्यक्त।
गो -पालन करना आज त्यक्त।।

आज की यात्रा हुई सुफल।
दृश्यता अनुपम मन विह्वल।।
समझते पशु उदीरित अर्थ।
"सरलता श्रेष्ठ क्रूरता व्यर्थ" ।।

मोती प्रसाद साहू
अल्मोड़ा, उत्तराखण्ड