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बीमारी में भी वही लोहा

लहनदार भट्टी से निकलने वाली

आग की लाल चिन्गारियों के बीच

लोहा और पत्थर कूटने वाले बन्जारों

को कभी आपने देखा है

चलिए, छोड़िए, आपके पास वक्त ही कहां है



ये सड़क के किनारे वाले लोग हैं

सालो से उपेक्षितो की सूची वाले

हाशिये पर जमे लोग हैं

जिनके हिस्से में न तो

खुशी कोई नई इबारत लिखती है

न ही बेहतरी बड़ी लकीर खींचती है

बंजारों के हाथों में बड़ी लकीरें

दर्ज ही नहीं होती कभी

बदकिस्मती ऐसी कि ज्योतिषियों ने

भी इनकी हस्तरेखाओं में राजयोग की

घोषणा नहीं की


प्रमोद झा
 मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश