इतने कृष्ण

अरुणिता
द्वारा -
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बैठा है दुशासन डगर डगर पर

इतने कृष्ण कहां से आयेंगे

सुनो नारियों खुद ही अपना चीर संभालो

हम खुद ही अपनी लाज बचायेंगे


कोमलता का यह समय नही

अब श्रृंगार नही शोभा देगा

तुमको रण चंडी बन जाना है

अगर तुम्हें कोई छू देगा


पशु से बत्तर हुए बलात्कारी

जब से लगी उन्हें यह बीमारी

उनका यह उन्माद खत्म करना होगा

निज सुरक्षा का तुमको ही दम भरना होगा


जिन हाथों ने हाथ लगाया

उन हाथों को अब कटना होगा

निर्वस्त्र अगर हुई द्रौपदी

फिर दुशासन को भी मरना होगा


समय नही सीता राधा बनने का

दुर्गा काली का रूप तुम्हे धरना होगा

हर एक बलात्कारी के मन में

खौफ मृत्य का भरना होगा



समय नहीं अब छुपने का

अब डट कर मुकाबला करना होगा

नहीं सुरक्षित तुम कभी कहीं

फिर व्यर्थ नहीं छुपना होगा



खुद ही अपनी लाज बचाओ

आज यही तुमसे कहना होगा


प्रज्ञा पाण्डेय मनु

वापी गुजरात



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