इन दिनों चर्चा चल रही है कि कक्षा पाँच और आठ में विद्यार्थियों को पहले की तरह ही अनुतीर्ण भी किया जा सकेगा यदि वें अधिगम के एक निर्धारित स्तर को प्राप्त नहीं कर पाते तो | स्वागत योग्य निर्णय है .... लेकिन विचित्र यह लगता है कि ऐसा विचार कुछ स्वयंसेवी संस्थानों द्वारा दिए गये अध्ययनों के आधार पर किया जा रहा है .. ऐसा सुनने में आया है और एक समाचार पत्र में भी ऐसा ही पढने को मिला | स्वयंसेवी संस्थानों के अध्ययनों पर निर्णय लिया जा रहा है यह समस्या का विषय नहीं है लेकिन जो शिक्षक धरातल पर कार्य कर रहे हैं और जिनका सीधा सम्बन्ध विद्यार्थियों से है उनका मत भी जान लेना क्या उत्तीर्ण और अनुत्तीर्ण जैसे निर्णयों से पहले जान लेना क्या आवश्यक नहीं था? शिक्षक तो कभी भी अनुत्तीर्ण न करने के निर्णय से सहमत ही नहीं थे | अनुत्तीर्ण न करने का निर्णय न केवल बेसिक शिक्षा की गुणवत्ता को आघात पहुँचा रहा था वरन माध्यमिक, उच्च और तकनीकी शिक्षा को भी प्रभावित कर रहा था | एक अध्ययन तो इन स्वयंसेवी संस्थाओं पर भी होना चाहिए कि इनका सरकारी विद्यालयों में योगदान आखिर है कितना ? देश में सरकारी विद्यालयों का एक बहुत ही सुदृढ़ ढाँचा है | यह सुदृढ़ ढाँचा देश की शिक्षा व्यवस्था को तब से सम्भाले हुए है जब ये स्वयंसेवी संस्थान अस्तित्व में आना शुरू भी नहीं हुए थे | देश के सरकारी विद्यालयों का बेहतर प्रशासन तंत्र हैं | इनके शिक्षकों के प्रशिक्षण के लिए उच्च स्तरीय संस्थान बहुत वर्ष पहले स्थापित किये जा चुके हैं | इन संस्थानों में साफ-सुथरी प्रक्रिया से विद्वान अध्यापकों, प्राध्यापकों और प्रशिक्षकों को नियुक्त किया जाता रहा है | एक विशाल तन्त्र में किसी स्वयं सेवी संस्थान के कहने मात्र से ही कोई निर्णय ले लिया जाए यह तो उचित नहीं |
चलिए, अब जो भी है जैसा भी है, आशा है कि देश के नौनिहालों के लिए बेहतर ही सिद्ध होगा | राष्ट्र के उज्ज्वल भविष्य की कामना के साथ नववर्ष की ढेरों शुभकामनाएँ |
जय कुमार
प्रधान-सम्पादक
तृतीया, शुक्लपक्ष, पौष, विक्रम सम्वत् २०८१