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ग़ज़ल

1.

यूँ सलीक़ा लिए पैगाम दिया जाता है।

नाम जो रोज़ सुबह शाम लिया जाता है।

काम वह क़ाबिले तारीफ़ हुआ करता है,

जो सही वक़्त पर अंजाम दिया जाता है।

चाँद ही वक़्त-बेवक़्त निकलता है मग़र,

बेवज़ह रात को बदनाम किया जाता है।

जी रहें हैं जताकर लोग सब हस्ती अपनी,

इक भला शख़्श क्यों गुमनाम जिया जाता है।

आप भर जायेंगे वो ज़ख़्म सारे चोटों के,

हाल ही क्यों इन्हें मुद्दाम सिया जाता है।




2.

हो गई कौन सी गल्तियाँ।

लग गई आप पर सख़्तियाँ।

कुछ हवाएँ चली और फिर,

सब कहाँ खो गई कश्तियाँ।

रास्ता जब हुआ घूमकर,

कट गई राह से बस्तियाँ।

इक ज़रा सी हुई भूल क्या,

लोग कसने लगे फब्तियाँ ।

आप-अपनें कभी भूलकर,

रास आई नहीं मस्तियाँ ।




3.

कभी जब बात नीयत की रहेगी ।

ज़रूरत आदमीयत की रहेगी।

रहेगा भाईचारा जब घरों में,

नहीं मुश्क़िल वसीयत की रहेगी।

हमेशा जीत लेगी दिल सभी का,

शराफ़त जो तबीयत की रहेगी।

निभाई जाएगी अक़्सर वही तो,

रिवायत जो जमीयत की रहेगी।



नवीन माथुर पंचोली

अमझेरा धार, म० प्र०