ईश्वर कन्या जन जाने दे

अरुणिता
द्वारा -
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मास अषाढ़ मेघ गगन हैं

तपती धरती अवां सरिस है

इसको जल की चाह जगी है

ईश्वर मेघ बरस जाने दे...!




आम्र मञ्जरी लगे टिकोरे ।

फागुन के चल रहे झकोरे ।।

सहज नहीं डाल में रुकना ।

ईश्वर अन्धड़ रुक जाने दे...!




खड़ी फसल है लगे फूल हैं ।

घोंट रही है फ़सल फूल को ।।

वर्षा से झड़ रहे फूल पर ;

ईश्वर दाने पड़ जाने दे...!




ज्ञात हुआ भ्रूण है कन्या ।

नहीं कुटुम्ब को है वह मान्या।।

इस हत्या को रुक जाने दे ।

ईश्वर कन्या जन जाने दे...!




मोती प्रसाद साहू

अल्मोड़ा, उत्तराखण्ड 



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