रक्त की उष्णता पाकर गर्मी में
निकल आये कुछ भेक भेकी
सफेद धागों में काले मोती पिरोकर
सोचा था भर देंगे पृथ्वी को
अपने नन्हे टेडपोलों से
असमय आहार बन गये
विषधर ब्यालों के
पुष्ट करने लगे नागिनों को
रूपान्तरित हो गये
नागिनों के अण्डों में
सोच वही थी ब्यालों की
जो थी भेक भेकनियो की
नागिनें भी उष्ण आहार
बन गई मोरों की
सजने लगे मयूरी पंख
मोरों के पृष्ठ पुच्छ में
फिर उन्ही मोरों का पंख
कृष्ण के धारण किया
अपने शीश किरीट में
जिनके जठर में थी अग्नि
विषधर पन्नगों को पचाने की
देवेन्द्र पाल सिह बर्गली
नैनीताल उतराखण्ड