अंतर्मन के हर कोने को,
बिन देखे ही छोड़ा तुमने,
मुझको केवल अब लगता ये,
अनुबंधित-सा जीवन मेरा|
अपनी भावों की नदिया को,
मैंने निश्छल बहते देखा|
हर पीड़ा के अँधियारे में,
दिल का दरिया दहते देखा|
आशाओं का त्यागन करता,
आहत मन का आँगन मेरा,
मुझको केवल अब लगता ये,
अनुबंधित-सा जीवन मेरा|
मन के इस सूने मंदिर में,
नित्य एक ही नर्तन होता|
जब भी याद मुझे तुम आते,
बेकल मन में गर्जन होता|
क्या तुमको अच्छा लगता ये,
ऐसे ये परित्यागन मेरा,
मुझको केवल अब लगता ये,
अनुबंधित-सा जीवन मेरा|
केवल तुम मेरे हो जाते,
सारी दुनिया से लड़ लेता|
बरखा की बूंदें हो जाता,
बेरी -सा बनकर झड़ लेता|
जाने तुम. भी कब समझोगे,
मन का एकाकीपन मेरा,
मुझको केवल अब लगता ये,
अनुबंधित-सा जीवन मेरा|
रमन शर्मा
पटोदी, हरियाणा