एक गीत

अरुणिता
द्वारा -
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अंतर्मन के हर कोने को,

बिन देखे ही छोड़ा तुमने,

मुझको केवल अब लगता ये,

अनुबंधित-सा जीवन मेरा|


अपनी भावों की नदिया को,

मैंने निश्छल बहते देखा|

हर पीड़ा के अँधियारे में,

दिल का दरिया दहते देखा|


आशाओं का त्यागन करता,

आहत मन का आँगन मेरा,

मुझको केवल अब लगता ये,

अनुबंधित-सा जीवन मेरा|


मन के इस सूने मंदिर में,

नित्य एक ही नर्तन होता|

जब भी याद मुझे तुम आते,

बेकल मन में गर्जन होता|


क्या तुमको अच्छा लगता ये,

ऐसे ये परित्यागन मेरा,

मुझको केवल अब लगता ये,

अनुबंधित-सा जीवन मेरा|


केवल तुम मेरे हो जाते,

सारी दुनिया से लड़ लेता|

बरखा की बूंदें हो जाता,

बेरी -सा बनकर झड़ लेता|


जाने तुम. भी कब समझोगे,

मन का एकाकीपन मेरा,

मुझको केवल अब लगता ये,

अनुबंधित-सा जीवन मेरा|



रमन शर्मा

पटोदी, हरियाणा



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