ख़ामोशी

अरुणिता
द्वारा -
0

रात भर ख़ामोशियों से बात मेरी होती है,

तन्हाइयों से, गहरी मुलाक़ात मेरी होती है।

इन वीरान लम्हों में, संग्राम दिल से चलता है,

दिल के आगे कहाँ, कुछ बिसात मेरी होती है।


सपनों की दुनिया में, ढूँढता हूँ ख़ुद को,

अनजानी राहों में, हर रात मेरी होती है।

जैसे कुछ खोया हो, किसी अंधेरे कोने में,

गुमशुदा तलाश में, हर रात मेरी खोती है।


देखता हूँ आसमां को जब, कुछ तारे टूटते हैं,

उम्मीदें जाग उठती हैं, पर ख़याल रूठते हैं।

इन बुझती रोशनी में, शायद एक सुबह मिले,

बस इसी कशमकश में, हर रात मेरी होती है।


इस खामोश रात में, कुछ सवाल जागते हैं,

जिनके जवाब पाने को, अरमान भागते हैं।

शायद उन उत्तरों का, इंतज़ार ही है क़िस्मत,

इस अधूरे इंतजार में हर रात मेरी सोती है।


सचिन तिवारी 

इंदौर, मध्य प्रदेश

एक टिप्पणी भेजें

0टिप्पणियाँ

एक टिप्पणी भेजें (0)

#buttons=(Ok, Go it!) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Learn more
Ok, Go it!