जगदेव प्रसाद एक सच्चे सीधे साधे इंसान थे । उनकी पत्नी जानकी देवी भी एक कर्तव्यनिष्ठ और परम साध्वी स्त्री थी । जगदेव प्रसाद रमाई पुर गाँव के रहने वाले थे । उनके दो पुत्र और एक पुत्री थी । जिनका नाम था बड़ा बेटा रघुबर प्रसाद और छोटा बेटा दीन दयाल बिटिया का नाम था रुकमनी । उनके सबसे आचरण बहुत अच्छे थे ।
जगदेव प्रसाद जी के पास थोड़ी किसानी थी । उसी ने उनका जीवन यापन होता था । जिससे उनके जीवन यापन मे बड़ा संघर्ष था । धीरे धीरे उनके बच्चे बड़े होने लग गये तो घर के खर्चे भी बढ़ने लगे । बच्चो की पढ़ाई लिखाई उनके कपड़े लत्ते का खर्च बढ गया । इस वजह से जगदेव प्रसाद और आर्थिक समस्या से जुझने लगे ।
एक दिन जगदेव प्रसाद ने अपने सभी बच्चो के साथ बैठ कर इस समस्या का समाधान खोजने के लिए विचार विमर्श किया कि कैसे घर के खर्चे सभाले जाय और कैसे घर की आय बड़ाई जाय । इस पर दोनो बेटों ने सलाह दी कि जो खेती अपने पास है वो और कुछ खेती बटाई ली जाई ( बटाई का मतलब कि जिसका खेत है उससे किराये पर लेना फ़सल की पैदावार का आधा हिस्सा खेत मालिक को दिया जाता है ) । जिससे अपनी आय बढ़ाई जा सकती है । ये बात सबको रुचिकर लगी ।
अब जगदेव प्रसाद और उनके बेटों ने गाँव मे चर्चा शुरु कर दी कि उनको बटाई मे खेत चाहिए । धीरे धीरे उनको १० बीघा खेत बटाई पर मिल गये । जगदेव के पास अच्छे किस्म के बैल थे , जिससे वो जुताई का काम करते थे ।अब जगदेव प्रसाद और उनके दोनो बेटों ने मिल कर खूब मेहनत करने लग गये । अच्छी फसल तैयार करने लग गये । जिससे उनकी आय बढ गई । कुछ समय के बाद जगदेव ने एक भैस खरीद ली उसकी देखभाल उनकी पत्नी जानकी और उनकी बेटी रुक्मणि करने लगी , जिससे उनकी आय और बढ गई । परिवार ठीक ठाक से गुजर बसर करने लग गया था । जगदेव प्रसाद ने अपने बच्चो से कह दिया कि पढ़ाई मे कोई लापरवाही न होने पाए । तीनो बच्चे दिन भर की मेहनत के बाद रात मे बैठ कर पढते थे और हर वर्ष अपनी कक्षा मे अव्वल आते थे । धीरे धीरे उनको स्कूल से वजीफा मिलने लग गया । तीनों बच्चो ने अपनी पढ़ाई स्कूल और कालेज के वजीफे से किया ।
पढ लिख कर तीनों बच्चे नौकरी की तलाश मे जुट गये । बड़ा बेटा फौज मे कर्नल हो गया छोटे बेटे ने MBBS करने के बाद सरकारी डाक्टर हो गया , बिटिया रुक्मणि ने वकालत की पढ़ाई करके शीर्ष उच्च न्ययालय मे वकील बन गई ।
अब जगदेव के पास किसी चीज का आभाव नही रह गया । पूरे गाँव मे उनकी ख्याति बढ गई । गाँव के लोगो ने जगदेव प्रसाद को निर्विरोध गाँव का प्रधान चुन लिया । जगदेव प्रसाद भी बड़ी लगन के साथ गाँव के लोगो के दुःख सुख मे सबसे पहले खड़े होते थे , जिससे उनकी छवि बहुत अच्छे प्रधानों मे गिनी जाने लगी । जिसकी वजह से वो हर बार आपने गाँव के प्रधान निर्विरोध चुन लिए जाते थे । गाँव की उन्नति के लिए हर संभव वो प्रयास किया करते थे । उन्होंने अपनी प्रधानी मे बिजली , सड़क , पानी , किसानो के लिए बीज़ आदि का अच्छा प्रबंध करवा दिया था । उनके गाँव मे उन्नत किस्मो की फसल उगाई जाने लगी । हर किसान खुशहाल हो गया था ।
जगदेव प्रसाद हमेशा अपने बच्चो को यही नसीहत दिया करते थे कि हमेशा अपने गाँव देश की उन्नति के बारे मे सोचते रहना और अपने गाँव और देश के लिए अच्छा करते रहना ।
एक दिन उनका छोटा बेटा दीन दयाल घर पर आया तो जगदेव ने रात मे खाना खाने के समय ये बात अपने बेटे के सामने रख दी कि बेटा अब हम ये चाहते है कि कुछ ऐसा काम किया जाय कि जिससे हम और तुम्हारी माता जी अमर हो जाय और अपने गाँव समाज का हित भी हो जाय । तो उनके बेटे ने कहा कि पिता जी ये बात तो बिल्कुल ठीक है , मुझे सोचने का थोड़ा समय दीजिये मै सोचता हूँ कि क्या किया जाय जिससे मेरे गाँव समाज का परम हित भी हो और आप दोनो का नाम अमर हो जाय ।
समय बीतता गया । कुछ दिन पश्चयात डाक्टर बेटा गाँव आया और अपने पिता जी से कहा कि बाबू जी ऐसा न किया जाय कि गाँव मे एक अस्पताल खोल दिया जाय जिससे गाँव समाज के लोगो का भला हो जाय । ये बात सुन कर जगदेव प्रसाद और उनकी पत्नी जानकी देवी बहुत खुश हुई और वो दोनो बोल पड़े कि बेटा यदि ऐसा हो जाए तो समाज का बहुत भला होगा और यही जगदेव और उनकी पत्नी चाहती थी कि " एक पंथ दो काज " हो जाएंगे ।।
जगदेव प्रसाद ने ये अपने मन की बात अपने गाँव वालो के सामने रख दी । ये बात सुनते ही गाँव के सभी लोग बहुत खुश हुए और बोले कि हम लोग अपनी ज़मीन दे देंगे अस्पताल बनवाने के लिए । लेकिन जगदेव प्रसाद जी ने गाँव वालो से ज़मीन नही ली ।
अब जगदेव प्रसाद जी ने उप- जिलाधिकारी को पत्र लिख कर उनसे अपनी मन की बात बताई और उनसे मिलने की आज्ञा मांगी । उप- जिलाधिकार ने जगदेव प्रसाद जी को मिलने की अनुमति दे कर अपने ऑफिस बुलाया । जगदेव प्रसाद जी बड़ी प्रसन्नता के साथ उप - जिलाधिकारी जी से मिलने उनके ऑफिस पहुंच गये और विस्तृत वार्तालाप किया । इस बात से उप - जिलाधिकारी महोदय भी बहुत खुश हुए । उन्होंने जगदेव प्रसाद जी को आश्वासन दिया कि मै पूरी कोशिश करूँगा कि आपकी अस्पताल के लिए सरकार से ज़मीन और कुछ पैसा आपको दिलाया जाय ये बहुत पुण्य का कार्य है । ये कह कर जगदेव प्रसाद जी को विदा किया ।
कुछ दिन बीत गये कोई सूचना नही आई उप- जिलाधिकारी महोदय के कार्यालय से तो जगदेव प्रसाद चिंतित होने लगे । इधर गाँव वाल उनसे पूछने लगे कि प्रधान जी क्या हुआ अस्पताल के लिए । जगदेव जी हमेशा गाँव वालो को सांत्वना प्रदान करते रहते थे कि सरकारी कार्य मे कुछ समय लगता है आप लोग चिंता न करो ।
एक दिन लगभग ग्यारह बजे होंगे । सरकारी गाड़ियों का काफिला जगदेव के घर के सामने आकर रुका । पूरा गाँव जगदेव के घर के सामने जमा हो गया । गाडी पर से उप - जिलाधिकार महोदय और उनके साथ तहसील दार साहेब कानूनगो लेखपाल भी उतरे । चाय पानी की सबके लिए व्यवस्था की गई , फिर उप - जिलाधिकारी महोदय ने अपनी घोषणा सभी गाँव के सामने कर दी कि इस गाँव को एक अस्पताल के लिए सरकारी जमीन और अस्पताल बनवाने के लिए ५० लाख रुपया सरकार के द्वारा स्वीकृत कर दी गई । इतना सुनते ही गाँव के सभी लग खुश हो गये और फूल माला लेकर आ गये उप - जिलाधिकारी महोदय को पहनने के लिए , लेकिन उप - जिलाधिकारी महोदय ने सभी गाँव वालो से कहा कि इन फूलो के हकदार है जयदेव प्रसाद जी अतः आप सभी लोग जगदेव प्रसाद जी को माल्यर्पण करे और अस्पताल का नाम होगा जगदेव प्रसाद जी और उनकी पत्नी के नाम का । अतः अस्पताल का नाम है " जगदेव जानकी चिकित्सालय " । इतना सुनते ही सभी गाँव वाले उप - जिलाधिकारी महोदय को साधुवाद बोलने लग गये ।
भूमि का आवंटन हुआ । भूमि पूजन के लिए शुभ मुहर्त निकलवा कर भूमि पूजन की तिथि निश्चित कर दी गई । सरे सरकारी अमला को भूमि पूजन मे बुलाया गया । भूमि पूजन मे उप- जिलाधिकारी महोदय ने जगदेव प्रसाद और उनकी पत्नी को बैठाया उनसे ही पूजा करवाई । कुछ दिनों मे अस्पताल बन कर तैयार हो गया । इधर जगदेव के डाक्टर बेटे ने अपने सभी डाक्टर मित्रो से अस्पताल मे सहयोग देने की प्रार्थना कि जिससे सभी लोग तैयार हो गये अपनी अपनी सेवा प्रदान करने के लिए और वो भी निशुल्क । उस अस्पताल मे जच्चा बच्चा विभाग , ह्रदय रोग विभाग , अस्थि रोग विभाग और मेडसिन विभाग खोला गया ।
मरीजों की देखभाल के लिए निशुल्क रख्खा गया । पर्चा बनने वाले काउंटर पर एक दान पेटी रख दी गई जिसकी जो श्रद्धा हो वो उस दान पेटी मे दाल दे बस यही फीस थी । जगदेव के गाँव के लोग भी बहुत अच्छे थे सभी लोग अपनी यथाशक्ति से दान देने लग गये अस्पताल को । जितने गाँव के लोग नौकरी करते थे उन सभी लोगो ने अपनी अपनी वेटा का कुछ हिस्सा अस्पताल की दान पेटी मे डालने लग गये ।
इधर उनकी बेटी रुक्मणि ने जो शीर्ष न्यायालय मे वकील थी उसने भी अस्पताल के नाम की दान पेटी न्यायलय के बाहर रख दी और सभी को दान देने के लिए प्रेरित करने लगी जो भी पैसा वहाँ से मिलता था वो सारा पैसा अस्पताल को प्रदान कर दिया जाता था । उनका बेटा जो फौज मे था उसने भी एक मुहीम चला दी अस्पताल के लिये दान की वो भी अच्छा खासा पैसा इकठ्ठा करके के अस्पताल को प्रदान करने लग गया । जिससे अस्पताल का कार्य बढ़िया चलने लगा गाँव क्षेत्र के लोग अस्पताल को निःशुल्क सेवाएं प्रदान करने लग गये । उस अस्पताल मे गंभीर गंभीर रोगी भी ठीक होने लगे और अस्पताल का नाम होने लगा । जिससे दूर दूर के लोग भी उस अस्पताल मे इलाज के लिए आने लगे । गाँव समाज के लोगो को उस अस्पताल से अच्छा खासा रोजगार भी मिलने लगा । आज वो गाँव एक सम्पन्न गाँव हो गया । जब जगदेव प्रसाद जी की पत्नी का देहांत हुआ तो उनकी मूर्ति अस्पताल के प्रांगन मे स्थापित की गई कुछ समय पश्चयात जगदेव प्रसाद जी की मूर्ति भी उसी अस्पताल के प्रांगन मे स्थापित कर दी गई ।
उत्तम कुमार तिवारी "उत्तम"
३६१ " का पुराना टिकैत गंज
लखनऊ, उत्तर प्रदेश
पिन कोड २२६०१७