नव वर्ष
तू करता नहीं,विमर्श|
बारह महीने बाद,
हर बार
कटकटाती ठंडक में,
आ जाता है|
बहुतो को,
बहुत ही भाता है|
पर
हर कोई ये कहने से,
सकुचाता है|
कि,
तू ठंडक में ही,
क्यों आता है|
क्या अच्छे दिन,
तुझे भाते नहीं|
ये बात,
क्या तुझे,
सब बताते नहीं|
पहाड़ों पर बिछी है,
बर्फ की चादर|
हम कर रहे,
फिर भी,
तेरा वंदन,
तेरा आदर|
अब आया है,
तो सबकी तुझसे,
कुछ उम्मीदें हैं,
तो कुछ हैं आशाएँ|
पूरी करना ऐसी उनकी,
वो नित,
तेरा गुन गाएँ|
खुशहाली हर पल बरसे,
औ वैभव,
रास दिखाए|
हर कोई में नेह रमे,
पर,
विपदा पास न आये|
आओ,
हर दिन, हम सब,
नव वर्ष मनाएं|
गीत सुमंगल गाएँ|
प्रो० सत्येन्द्र मोहन सिंह
रूहेलखंड विश्वविद्यालय, बरेली|