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संस्कृति की समझ


मां मां क्या हमारे पूर्वज बहुत बड़े ज्योतिषी थे?

सड़क बुहारने वाली लक्ष्मी की चार साल की बिटिया ने लक्ष्मी से पूछा।

क्यों ऐसा क्यों पूछ रही है....

कितने ज्ञानी थे सब लोग....

कित्ता ध्यान रखते थे मेरा...

ऐसा क्यों लगा भाई तुझे?

तभी तो इत्ते अच्छे अच्छे रीति रिवाज बनाए,,।

अब तुझे क्या पता रीति रिवाजों के बारे में?

सब पता है मुझे, मैं अब कोई बच्ची थोड़े ही हु।

अच्छा। मैं भी तो सुनूं क्या पता है तुझे?

ओर नही तो क्या, अगर ज्योतिषी नहीं थे तो उन्हें कैसे पता की हम गरीब होंगे, ओर तुम्हारी मीनू को पटाखे चलाना बहुत पसंद होगा।

मतलब? लक्ष्मी चौकी।

हां ना। तभी तो इत्ते अच्छे अच्छे रीति रिवाज बनाए।

कोन से अच्छे बनाए? लक्ष्मी ने कौतूहल से मीनू की ओर देखा। तभी उन्होंने दिवाली बनाई सबके लिए, और पड़वा बनाई मेरे लिए....

पड़वा तेरे लिए कैसे?

उनको पता था तभी तो ना दिवाली के दिन पटाखे चलाते है। फिर पड़वा को भी सुबह अंधेरे में ही जल्दी झाड़ू बुहारते है।

कोई अपना कचरा नहीं फेंकता घूरे पर। फिर सुबह सुबह भी पटाखे चलाते है।

हां तो इसमें तू कहा बीच में आ गई?

आई ना मां। उनको पता है की गरीब अपने बच्चो को पटाखे नहीं दिलवा पाएंगे।

इसीलिए ये रिवाज बनाए।

रास्ते के सारे पटाखे एक ओर इक्कठा कर के रख देते है। फैकते नहीं है।

तभी तो तुम चुन चुन कर मेरे लिए खूब सारे पटाखे ला पाती हो।वरना तो कैसे मैं पड़वा पर सुबह सुबह पटाखे चलती।

हमे घर से दूर तक जाना पड़ता है, तो रास्ते में आग बुझ जाती, इसलिए साथ में एक दिया भी जला कर रखते है, ताकि मीनू को पटाखे जलाने में कोई दिक्कत न हो।

कित्ते अच्छे रिवाज है हमारे।

कित्ते समझदार थे हमारे पूर्वज।

मीनू की बात सुनकर लक्ष्मी का मुंह खुला रह गया।

आज तक अपनी जात समाज, रिवाजों को कोसती लक्ष्मी को अचानक उनका सही अर्थ समझ आ रहा था। काश ये सही संस्कृति की समझ समाज को बाटने वालो में भी आ जाती। सोच कर लक्ष्मी आधी मुस्कुराने लगी ओर पटाखे चलाने में व्यस्त मीनू की ओर देखने लगी।


प्राची शर्मा पाण्डेय 

वरिष्ठ शिक्षिका

इंदौर मध्यप्रदेश