काट काट पेड़ों को हमने,मौत को दस्तक दे डाली।
बन गए भवन चारु मगर,विलुप्त सर्वत्र हरियाली है।
शहरों के विस्तार हेतु,हमने काट दी डाली डाली है।।
पर्यावरण हुआ जहरीला,अनल उगलता सूरज है।
सूख रही अवनि काया,आग सी तप रही रज है।।
हम बूंद बूंद को तरस रहे,हर कुंआ पोखर है खाली।
काट काट पेड़ों को हमने,मौत को दस्तक दे डाली।।
गांव सब हो रहे विलुप्त,अरण्य सब हमने काट दिए।
टुकड़े किए हरे वृक्षों के, हमने शहरों को बांट दिए।।
नदियां कराह रहीं सारी, जल को पशु पक्षी व्याकुल।
सूर्य ताप से त्राहि त्राहि है,मनुज आज सभी विह्वल।।
उष्ण वायु का प्रवाह है,खो गई कहीं पवन मतवाली।
काट काट पेड़ों को हमने, मौत को दस्तक दे डाली।।
गृह तो रुचिकर बना लिए,पर धरा का आकर्षण भूले।
पाश्चात्य की चकाचौंध में,पर्यावरण का संरक्षण भूले।।
हम विकाश की उत्कंठा में,द्वार विनाश के खोल गए।
पेड़ों को लगाना बंद किया, जहर हवा में घोल गए।।
एसी,कूलर,पंखे आश्रित,कैसे होगी जीवन रखवाली।
काट काट पेड़ों को हमने, मौत को दस्तक दे डाली।।
एस०पी० दीक्षित
उन्नाव, उत्तर प्रदेश