कामता बाबू को लोग दफ़्तर में गाँधी जी कहा करते थे । कंपनी काम के प्रति पूर्ण समर्पित ! यह समर्पण की भावना उनके रिटायरमेंट के बाद भी किसी आदत की भाँति कायम रही । अपने कार्यकाल के दौरान शायद ही कभी ऐसा मौका आया हो, जब उन्होंने किसी मजदूर का काम करने से आनाकानी की हो । दूसरों की सेवा की खातिर सदैव तत्पर रहते । सेवा की यह भावना उनके भीतर एक जुनून की भाँति हरदम विधमान रहती थी । कोई अंधे से पूछे कि तुम्हें क्या चाहिए ? तो नि : संदेह उसका जवाब होगा " दो आँखें..!" उसी तरह कोई कामता बाबू से पूछते कि आपको क्या चाहिए तो वे कहते " काम..और काम के सिवाय कुछ नहीं..!" चाहे दफ़्तर का पढ़ाई-लिखाई वाला कोई भी काम हो.बेकार बैठकर समय काटना उन्हें आता नहीं था । लेन-देन के मामले में भी वो अनोखे और अजूबे थे ! अपने सर्विस जीवन में रिश्वत तो कभी ली ही नहीं उसने, बस यही कहते रहे " यह पाप है ! नाजायज है ! दूसरों का गला दबाना है, उनका हक छीनना है..। "
हाँलाकि इसी गाँधीवादी सिद्धांत को लेकर उनका बड़ा बेटा महेश बाप से खफा - खफा ! रहता था । दिन भर जाने कहां कहां भटकता फिरता और देर रात आकर घर में बाप से लडता । दोनों बाप बेटे के बीच मतभेद कभी कम नहीं हुआ । महेश सदैव उबाल में रहता -" कोई कुछ करना चाहे तो कैसे करे ? इस घर में गाँधी की आत्मा जो वास करती है । "
कामता बाबू कसमसाकर रह जाते । उनके लिए सुकून की बात यह थी । उनका छोटा बेटा नरेश अपनी बीए की पढ़ाई के साथ-साथ एक अखबार के दफ़्तर में प्रूफ रीडिंग का काम भी सीख रहा था । कामता बाबू को अपने इस होनहार बेटे से ढेर सारी उम्मीदें बंधी हुई थीं ।
हां,तो कामता बाबू जब यह कह रहे होते कि रिश्वत लेना पाप है,दूसरों का हक छीनना है,तो आस-पास के मुस्कुराते चेहरों से अनभिज्ञ होते । जबकि रिश्वतखोरों के बीच ही हर दिन उनका उठना बैठना होता । देखना तो तब दिलचस्प होता, जब कोई मलकटा सरदार अपने दंगल का तिमाही बोनस या फ़िर सीक लीव का का पैसा चेक करवाने आता और काम के बदले सौ दो सौ देने लगता तो वो एकदम से उस पर भड़क जाते " तुम सब मुझे नोट दिखाते हो,कामचोर कहीं के,हमें क्या समझ रखा है,अकाल की ढेंकी..! चल भाग। "
सरदार हंसते हुए भाग खड़ा होता ।
तभी कोई कह उठता " कामता बाबू,आपको इस युग में पैदा नहीं होना चाहिए था । "
कामता बाबू बिना कहे मुस्कुरा उठते थे । लेकिन ऊपरी आमदनी को इस तरह लतियाता देख सेल विभाग के मास्टर बाबू कुढ़ सा जाता था । खखस कर कह उठता -" कामता बाबू आपको ऐसी जगह नौकरी नहीं करनी चाहिए थी ।"
जवाब में कामता बाबू केवल हंस भर देते थे ।
निर्धारित समय पर आफिस आना और गोंद की तरह दिन भर अपने काम पर चिपके रहना,उन्हें बहुत भाता था । कंपनी नियम से सदैव बंधे होते । सर्कुलर से कभी इंच भर भी इधर-उधर होते नहीं देखा गया । जोड़-घटाव के मामले में वो खुद एक कम्प्यूटर थे । सालाना बोनस हो या सैलरी, सहकर्मी सब उन्हीं से" वेरीफाई " करवाते ।
अधिकारी भी उनके बेदाग छवि और ईमानदारी से खासा प्रभावित थे ।
लेबर आफिसर अमरीक सिंह तो यहां तक कह देते " कामता बाबू, सालाना बोनस पर आपका जोड़ ही अंतिम माना जायेगा..।"
अपने जीवन और काम को उसने रूटीन बद्ध कर रखा था ।
आफिस से घर और घर से आफिस । यही उनकी दुनिया थी । बाकी बचा तो सगे- संबंधियों के यहां कभी मर- मेहमानी भी कर लेते थे । लेकिन मेला- सिनेमा या अन्य मनोरंजन के साधन कभी उनको आकर्षित नहीं कर सके । हां, वक्त निकाल गांव समाज की बैठकों में जरूर शामिल होते थे,ताकि गांव का भाई चारा हर किसी के साथ बना रहे।
उनके जीवन के साथ जुड़े कई दिलचस्प प्रसंग आज भी लोगों याद हैं । वो भादो माह की एक रात थी । अचानक कामता बाबू विस्तर से उठ बैठे । उन्हें नींद नहीं आ रही थी । रोगों से मुक्त रमा देवी गहरी नींद सो रही थी । कामता बाबू ने धीरे से दरवाजा खोला और बाहर निकल आये । घर से आफिस की दूरी महज तीन किलोमीटर की थी । जब वह आफिस गेट के सामने पहुंचे तो रात के दो बज रहे थे और रात्री सुरक्षा गार्ड कुर्सी पर बैठे- बैठे उंघ रहा था । उसने धीरे से गेट को धकेला और अंदर आ गए । जेब टटोली आफिस की चाबी उनकी जेब में थी । पहले उन्होेंने दरवाजा खोला और अंदर जाकर कुर्सी पर बैठ गए । रात को पहली बार अपने ही आफिस में बैठ,अपने ही आफिस का मुआना कर रहे थे । एक अद्भुत अह्सास !
जब वापस लौटने लगे तो रात्री गार्ड लंगन सिंह चौंकता हुआ उठ खड़ा हुआ । पहचानते ही पूछ बैठा -" कामता बाबू आप यहां इस वक्त..? "
" घर में नींद नहीं आ रही थी । बाहर निकला तो टहलते हुए इधर आ गया । यहां पहुंचा तो देखा,आप कुर्सी पर ही सो रहे हो..!"
" आप, अंदर भी गये थे..?"
" हां, अंदर गया , आफिस खोला,लाइट जलाई,थोड़ी देर बैठा फिर दरवाजा बंद किया और चल दिया..।"
लगन सिंह सोंच में पड गया । उसे लगा इन्हें नींद में चलने की बीमारी है । ताजूब है ! यह अंदर गया और मुझे पता तक नहीं चला । अगले ही पल क्या सोच वह कामता बाबू के चरणों पर झूक गया था " कामता बाबू,यह बात पीओ साहब से मत कहिएगा,नहीं तो मेरी नौकरी चली जायेगी..।"
" उठो,नहीं कहूंगा । लेकिन इर तरह सोना ठीक नहीं है,लाखों करोडों की संपति यहां पड़ी है, तुम्हारे भरोसे में..चोर लुटेरे हैं..।"
" कसम खाता हूँ, आगे से ऐसा नहीं होगा..!" लगन सिंह ने कहा और कान पकड लिया था ।
लोगों ने सुना तो खूब हंसे " कामता बाबू भी हद करते है..!"
इधर कामता बाबू को काफी परेशान देखा जा रहा था । पता चला पत्नी की बीमारी से जूझ रहे है । एक दिन अचानक फुसरो दवा दुकान में मिल गए। बीमार- बीमार से लगे । प्रणाम- पाती हुई । तो पूछा " कैसे है आप, बीमार लग रहे है..?"
लगा हिचक कर रो पडेंगे,ऐसा भाव उभर आया उनके चेहरे पर ।
" पत्नी बीमार है,उसी की दवा लेने आया हूँ..!"
" क्या हुआ भाभी जी को,मनसा पूजा में देखा था,भली चंगी थी..!" मैं हैरान था ।
" दो माह पहले सर में दर्द तीव्र दर्द उठा था । डॉक्टर के पास ले गया । एक्स-रे हुआ । देख कर डॉक्टर ने " इसे कैंसर हो गया है !"
" मुझे विश्वास नहीं हो रहा डॉक्टर साहब..। " मै स्तब्ध था।
" आपके न मानने से इसका कैंसर ठीक नहीं हो जायेगा, जब तक है, दवा चलाते रहिए, रीलिफ मिलेगी..!" डॉक्टर ने जोर देकर कहा था । तब से भाग - दौड जारी है..सुधीर बाबू..।"
उन्होंने आगे और भावुक स्वर में कहने लगे " जानते है सुधीर बाबू, जिस दिन मैं रिटायर हुआ, सबसे ज़्यादा रमा ही खुश थी,मुझसे कहने लगी " अब फूर्सत ही फूर्सत ! अब हम जहां चाहें,घूम-फिर सकते है,रिश्तदारों से मिल सकते है, उनसे न मिलने जुलने की शिकायत भी अब हम दूर कर देंगे ". बेचारी को पारसनाथ पहाड़ भी हम एक बार घूमा न सके,हम जैसों का ज़िन्दगी इसी तरह इम्तिहान लेती है सुधीर बाबू..!"
इसी के साथ वो चले गए थे । उनको जल्दी जाना था । पर उनके अंतिम शब्द ने मुझे झकझोर डाला था । अच्छे के साथ ही यह सब क्यों होता है ? बहुत देर तक मैं इसी सोच में डूबा रहा ।
तमाम भाग दौड़ के बावजूद कामता बाबू पत्नी रमा देवी को नहीं बचा सके । पत्नी की मृत्यु से वो मर्माहत और शोकाकुल तो थे । लेकिन उनके लिए यह कोई अनहोनी न थी । सबका सब कुछ तय रहता है । यह उनका दार्शनिक विचार था । जो अक्सर लोगों से कहा करते थे ।
सुबह रमा देवी ने अंतिम सांस ली थी । अड़ोस- पड़ोस के लोगों का आना जाना शुरू हो गया था ।
" कभी जर न बुखार, सीधे कैंसर....!" लोग भी हैरान थे ।
रमा देवी की मृत्यु की खबर गांव फैल चुकी थी । सगे- संबंधियों का भी आना शुरू हो गया था । घर में मातम छाया हुआ था और सबकी आँखें नम थी । कामता बाबू एक कोने में खड़े शोक में डूबे हुए थे । रोने वालों में सबसे ऊंची आवाज महेश की थी,जो कहीं से पी आकर आंगन के बीचों-बीच खड़ा था । छोटा बेटा नरेश मां की शवयात्रा की अंतिम तैयारी में लगा हुआ था । रमा देवी के सिरहाने अगरबत्ती जला दी गई थी । अब सबकी निगाहें कामता बाबू पर आ टिकी थी । नरेश बाप के करीब पहुंच कंधे पर हाथ रखा और फफककर रो पड़ा " बाबू जी, मां..अ !" लगा कामता बाबू भी रो पड़ेंगे ।
" लोगों से अब भी कहते सुना जा रहा था" बेचारी गौ थी..गौ..! "
" कम खर्च से भी कैसे घर चलाया जाता है,यह कोई रमा देवी से सीखे ।"
, कम पैसों को लेकर कभी पति को कौसते नहीं सुना..!"
" यह बड़ी बात है..! "
तभी जीप रूकने की आवाज नें सबका ध्यान अपनी ओर खींचा था ।
" कामता बाबू के दफ़्तर के साथी होंगे..।" किसी के मुँह से निकला ।
परन्तु वह धनपत सिंह था । आफिस का चपरासी । उसे आया देख कुछ देर के लिए कामता बाबू भी सोच में पड़ गये " इस तरह धनपत का अचानक से आना ?,क्या वजह हो सकती है, वो भी कोलियरी जीप से आया है, कामता बाबू को मालूम था धनपत साइकिल से आना जाना करता है । फिर यह जीप ...?" कामता बाबू के दिमाग में सवाल ही सवाल थे । " कामता बाबू के मन में यह उमड- घूमड चल ही रहा था कि तभी उसे चेतलाल की कही बात याद आई। परसों ही वह बतला रहा था " कामता बाबू, लगता है कंपनी को लाखों का एल बी लगेगा..।"
" क्यों,ऐसी क्या बात हो गई है..?"
" दोनों कम्प्यूटर खराब हो गया है । पानीपत और रोपड का कोल बिल रूका पड़ा है । "
" कहीं यह जीप मेरे लिए तो नहीं भेजा गया है..?"
तभी धनपत सिंह सामने आया था । उसने प्रणाम के साथ ही मैनेजर अग्रवाल साहब का पत्र उन्हें पकड़ा दिया । पत्र खोला । लिखा था " कामता बाबू, इस वक्त हमारे सामने एक समस्या आ खड़ी हो गई है । पंद्रह तारीख तक पानीपत और रोपड का बिल भेजना है औ हमारे दोनों कम्प्यूटर खराब हो गया है, मास्टर बाबू तो है,पर उसके जोड घटाव पर भरोसा नहीं किया जा सकता है । लाखों का मामला है । हमें आपकी मदद चाहिए । मै जानता हूँ, आप रिटायर कर चुके है । इसके लिए आपको मजबूर नहीं किया जा सकता है । लेकिन कंपनी के लिए आज भी आप बहुत खास है । आज भी हमें आप पर पूरा भरोसा है..कुछ रकम भेज रहा हूँ, अस्वीकार मत कीजियेगा. आपका ..अग्रवाल साहब मैनेजर..।"
धनपत ने दूसरा लिफाफा कामता बाबू को पकड़ा दिया था।
" भतीजे,अच्छा होगा, दाह-संस्कार के लिए मां को सीधे कासी ले जा..।" पड़ोसी लटन चाचा नरेश से कह रहा था -" सब काम एक ही साथ निपट जायेगा । कासी में दाह-संस्कार बड़ा पुण्यकर्म है, जलने वाले और जलाने वालों का जीवन भी तर जाता हैं..! बाप से कहो,वो हां कह दे..।"
" अरे,मै तो कहूंगा,बाप से पूछना बेकार है । " सगा जेठा ने कहा -" जिस आदमी ने आज तक घर में सत्यनारायण कथा तक न होने दी,उनसे कासी ले जाने की बात करोगे तो कहेगा " सब फिजूल खर्ची है, वहां पण्डो का पेट भरना है...।"
बढ़ते शोरगुल से कामता बाबू का ध्यान भंग हुआ । जीवन की पटरी ने उनको आंगन में खड़ा कर दिया । उन्होंने वर्तमान हालात का जायजा लिया । दोनों बेटे उन्हीं की ओर देख रहे थे । कामता बाबू को लगा उन्हें अपना कर्म नहीं छोड़ना चाहिए । आज तक तो वो कर्म को ही जिता चला आ रहा है । जीना- मरना संसार का दस्तूर है । जब वह नहीं बदलता है, फिर हम क्यों बदलें,क्यों पीछे हटें अपने कर्म से । इसी के साथ उलझनों से वो बाहर निकल आए थे । दोनों बेटों को उसने पास बुलाए और कहा -" मुझे अभी दफ़्तर जाना है । मां की दाह-संस्कार तुम दोनों को करना है, कहां और कैसे करोगे,आपस में तय कर लो..।"
चलने से पूर्व उन्होंने अग्रवाल साहब का भेजा लिफाफा नरेश के हाथ में थमाते हुए कहा " इसे संभाल कर रखो, इसमें जो भी रकम है, मां के श्राद्ध कर्म में काम आयेंगे,मैं चलता हूं..चलो धनपत..।"
" इस तरह चले जाने से लोग क्या कहेंगे " यकायक मन में आये इस विचार ने कामता बाबू के बढ़ते कदम पर ब्रेक लगा दी । उसने रमा देवी की ओर देखा,दो कदम आगे बढ़ आये । उस पत्नी के खातिर जो आज तक उनके साथ हर सुख-दुख में भागीदार बनी रही । और जो अब इस दुनिया में नहीं रही । उन्होंने मृतशैया पर लेटी पत्नी से कहा " क्षमा करना रमा ,तुमने अपना कर्म पूरा किया,अब मैं अपना कर्म करने जा रहा हूँ..! " ड़बड़बाई आंखों को कामता बाबू ने गमछे से पोछा और धीरे से धनपत के पीछे हो लिए।
नरेश, महेश से कह रहा था " दादा,ठाकुर ( हाजाम)से कह दो, गांव में खबर कर दें । मां का दाह-संस्कार, दामोदर घाट पर होगा, पुण्य- प्रताप के चक्कर में आदमी सदियों से लुटाते रहे हैं । लेकिन हमें वही गलती नहीं करनी है । मनुष्य का जीवन कर्म के साथ जुड़ा हुआ है,उनके लिए कर्म ही धर्म है ! कासी- बनारस में दाह-संस्कार से लोगों का पाप नहीं धूल जाता..!"
नरेश की कही बातें जीप पर सवार हो रहे कामता बाबू के कानों में भी पहुंची थी । उनके अंदर का द्वंद्व छंट चुका था। और वो शांतचित्त नजर आने लगे थे ।
श्यामल बिहारी महतो
ग्राम - मुंगो, पोस्ट- गुंजरडीह
थाना - नावाडीह, जिला- बोकारो, झारखंड
पिन कोड-829132
फोन नम्बर- 6204131994