आजकल औरतें
लिख रही हैं कविताएं
अपने अनकहे
दर्द की व्यथाएं
जिसे अकेली ही
झेलती रहीं
और होंठों ही होंठों में
पीती रहीं।
आंसू पलकों में ठहरा लिए
ज़ख्म अपने सहला लिए
बेख़ौफ़ सी अब वे
उन दर्दों को उघाड़ रही हैं
अपनी यातनाओं की
कहानी सुना रही है।
देह के अत्याचार
मानसिक बलात्कार
घर के नाम पर यातना गृह
पूरी जिंदगी झेलती नफरत
कुछ पल भी सुकून के
चुरा नहीं पाईं
सदा गरियाती और
लतियाती र हीं।
चरित्रवान कभी नहीं रही
शक के दायरे में रहीं
उनकी देह को कोई भी
निरावरण करता रहा
देह देह नहीं
माटी की पुतली रही
कुछ औरतें ढाल रही है
दर्द भरे शब्द
जो यहां वहां बिखरे पड़े हैं
जिनके है कुछ अर्थ।
अब वे आंसू पीकर
जीना नहीं चाहतीं
हंसना नहीं जानती
जिन बुझते चिरागों में
तेल डालती रहीं
मुरझाते रिश्तों को
खाद पानी देतीं रहीं
औरतें सब जानती है
सुना रही है अपनी व्यथाएं
अपनी अनकही कथाएं।
सुधा गोयल
२९०-ए,कष्णानगर, डा दत्ता लेन
बुलंद शहर -२०३००१
उत्तर प्रदेश