किस कारण साजन छाँह न की

अरुणिता
द्वारा -
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(दुर्मिल सवैया में समस्या पूर्ति)


स्थिति
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पति साथ गई नव दृश्य दिखा,

सखि चौंक पड़ी पर आह न की।


दुविधा वश भूल गई पति से,

कुछ पूछ सकूँ फिर चाह न की।।


जब पूछ उठे पति ही तुम क्यों,

अटकी मम ओर निगाह न की।


वह बात बता अब प्राण अरी,

तब मौन खुला परवाह न की।।


समस्या
=====


फिर एक सवाल किया पति से,

जब राह गही अवगाहन की।


यह जीवित आहत सी लगती ,

असली मुझको तिय पाहन की।।


सिर ऊपर घाम चढ़ी फिर भी,

पकड़े रसरी रथ वाहन की।


सच प्राण कहो यह कौन खड़ी ,

किस कारण साजन छाँह न की??


पूर्ति (उत्तर)
========


सुन प्रश्न जवाब दिया पति ने,

वह नारि बनी प्रिय पाहन की।


पकड़े कर में रसरी सजनी,

रथ वाहक है पथ वाहन की।।


जब लू न लगे तनमें तब क्या,

सरदी गरमी अवगाहन की।


सिर ऊपर चूनर प्राण धरी ,

इस कारण साजन छाँह न की।।


गिरेन्द्रसिंह भदौरिया "प्राण" 
इन्दौर, मध्य प्रदेश 


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