ग़ज़ल

अरुणिता
द्वारा -
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कयामत मे भी मेरी निशानी होगी

ग़ज़लो मे मेरी एक कहानी होगी ।।


भले ही कोई भुला दे हमे 

पत्थरो मे भी मेरी निशानी होगी ।।


खिल उठेगी उस दिन मेरी ग़ज़ल 

जिस दिन तेरी मुझमे दीवानगी होगी ।।


सुपुर्दे खाक हो जाऊँगा एक दिन इस दुनियाँ से 

मेरी लिखी हुई ग़ज़ल की हर ज़ुबा पर रवानी होगी ।।



ताजोतख्त के लिए नही लिखा ग़ज़ल मैने 

मेरी ग़ज़ल मे दुनियाँ के हुकूक की निशानी होगी ।।


ये काफिया ,बंदिश ,अता ,रदीफ़ ,बहर क्या है 

मेरे हर लब्ज पर मेरे रूह की निशानी होगी ।।


मेरे अल्फाज़ पढे जाएंगे बड़ी अदा से 

जैसे मस्जिद मे सजदा करती हुई पेशानी होगी ।।


कह दो फरिश्तो से आके ले चले मुझे इस ज़हा से 

उस ज़हा मे भी मेरी ग़ज़लो की निशानी होगी ।।


उत्तम कुमार तिवारी " उत्तम " 

लखनऊ, उत्तर प्रदेश 



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