अपने अपने रावण

अरुणिता
द्वारा -
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अपने अपने रावण
विद्वानों की बस्ती में रक्षण है, 
सबके अपने- अपने रावण है|
दशानन से हर दिशा को धेरे है|
कलुषित मन लिए दिखते पावन हैं|

कुतर्क शास्त्री बन श्रेष्ठ सिद्ध होते हैं|
करूणा आवरण में गिद्ध होते हैं|
हर कर सिया के भावों को दंभ भरते है, 
निज स्वारथ हेतु कुटुंब की बलि देते हैं|

नाना रूपों में जन्म लेकर आज भी, 
जलते पुतलों में भस्म होकर आज भी, 
हर गली हर घर में छुपा हुआ है, 
एक रावण हर देह में जिंदा है आज भी,

अंहकार की लंका में पनप रहा है, 
अत्याचारी शक्ति में बढ़ रहा है, 
खड़े चौराहों में भले रावण ही रावण, 
रोक ही लेगा मर्यादा का एक राम, 

रश्मि मृदुलिका
 देहरादून, उत्तराखण्ड

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