
"अरे ओ कमाल! मुआं कहाँ मर गया।देखता भी नहीं कि मेरी पनडिब्बी की सारी कसैली खत्म हो गयी।"बड़बड़ाते हुए दरवाजे तक उसे देखने आई।कहीं किसी के साथ गप्पें तो नहीं मार रहा।गुस्से से कमाल को आवाज लगाती रहीं पर वह घर में होता तो सुनता।किसी काम से वह बाजार गया था।घर का एक अहम सदस्य था कमाल।एकदम वफादार।बड़ी बी की हांक पड़ते ही हाजिर हो जाता।
पान का बीड़ा बनाते हुए डिब्बे पर नजर पड़ी तो पारा सातवें आसमान पर जा बैठा था।बड़ी बी हमेशा से ऐसी नहीं थी।वक्त के साथ वह कड़क मिज़ाज की हो गई थी।हमेशा पान चबाते हुए कोई न कोई गाना गुनगुनाते रहतीं।मुँह तो कभी खाली किसी ने शायद ही देखा हो।
चार बहनों में सबसे बड़ी थीं बड़ी बी।यही कहकर सब उन्हें बुलाते पर उनका एक नाम भी था 'सन्नो ' ।पता नहीं उन्हें अपना यह नाम पसंद नहीं आता था।दिमाग से जितनी जहीन उतनी ही वह खूबसूरत भी थीं।सारी बहनों की शादी हो गई थी।अब गुलाम अली कुछ फ़ारिग ही हुए थे कि बड़ी बी के शौहर का इंतकाल कारखाने के किसी मशीन की चपेट में आ जाने से हो गई थी।इस हादसे का उनके दिमाग पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ा।वह सदमे में रहने लगीं।
बेचारे गुलाम अली बेटी के दुख को कम तो नहीं कर सकते थे और न ही खुशियां वापस लौटा सकते थे।अपने साथ लिवा लाए।अच्छी देखरेख में वह स्वस्थ तो हो गई पर बड़ी बी का स्वभाव एकदम बदल सा गया।पान खाने की लत उन्हें कैसे लगी यह तो कोई नहीं जान पाया।बीड़ा पर बीड़ा और ग़म भरे नगमें सुनना यही दिनचर्या थी उनकी।गुलाम अली अपनी अनुपस्थिति में कमाल को हमेशा आसपास ही रहने को कह जाते।
कमाल गुलाम अली का खून तो नहीं था पर वह कहीं से भी महसूस न होने देता।
बचपन में कहीं भीख माँगते हुए गुलाम अली को मिला था वह।जाने क्या था कि उसे अपने घर ले आए,शायद अल्लाह की यही मर्जी रही होगी।बड़ी बी का कोई सगा भाई भी तो नहीं था।
कमाल को जब गुलाम अली अपने साथ लाए थे तो बड़ी बी की अम्मी बहुत गुस्साई थी।उसे वापस छोड़ आने की हिदायत तक दी थी पर गुलाम अली टस से मस न हुए।आखिर बड़ी बी की अम्मी को मानना ही पड़ा।बड़ा हंगामा खड़ा कर दिया था बड़ी बी की अम्मी ने...
"किसे ले आए हो।पहले से ही चार बच्चे हैं और यह पाँचवा।यतीमखाना खोल लो फिर जितने राह में मिले सबको ले आना उनका भी एक ठिकाना हो जाएगा।"
"इतनी कड़वी जुबान न रखो बेगम! जानती हो न किसी दीन को देखकर मुँह फेर लेना पाप है।हमारे अल्लाह पाक ने भी तो यही कहा है अपने सामर्थ्य अनुसार किसी की मदद जरुर करनी चाहिए।मुझे मेरे दिल ने यही कहा और मैं अपने दिल में की सुनकर इसे यहाँ ले आया।
जरा इसके तरफ गौर से देखो,कैसी मासूमियत है बच्चे के चेहरे पर।"
थोड़ी नरमियत दिखाते हुए वह राजी तो हो गईं पर अपनापन ना दे पाई कभी।
कमाल गुलाम अली को अब्बू और बड़ी बी की अम्मी को अम्मी ही कहता।
गुलाम अली उसे भरपूर प्यार करते।गुलाम अली अपने व्यापार में मुनाफे को देखकर कहते...तू तो मेरे लिए नेक कर्मों का फल है रे।देख तेरे कदम जबसे पड़े हैं दिन बदल गए मेरे।मेरे बाद तुझे ही तो देखना है सबको।तेरे हाथों में ही हमारे बुढ़ापे की पतवार है बेटे।
गर्मी का मौसम था।लू के तेज थपेड़े चल रहे थे।बड़ी बी की अम्मी लूं का शिकार हो गईं ।बुखार के मारे तप रही थी। सर दर्द से बूरा हाल था।गुलाम अली किसी काम नसे दो-चार दिन के लिए बाहर गए थे।कहती भी किसे बड़ी बी की वैसे भी दिमागी हालत ठीक नहीं थे।घर पर तीन लोग ही थे।बुखार में बेसुध सी उन्हें कुछ भी पता कहाँ था किसने उनकी सेवा की दिन-रात जागकर।मन हल्का हुआ तो देखा कलाम बगल में ही लेटा है।नींद और थकान उसके चेहरे से ज़ाहिर हो रही थी।गौर से उसकी ओर देखते हुए उनकी आंखें भर आई।अपनी कठोरता पर लज्जित होते हुए मन ही मन स्नेह की बरसात कर दी।
कितना मासूम है तू ,सच ही कहते हैं गुलाम अली ,मैं ही नहीं देख पाई ना समझ पाई तुम्हें।अल्लाह मुझे मुआफ करें इस गुनाह के लिए।चाहा सीने से लगा ले पर उसके नींद में कोई खलल ना पड़े इसलिए धीरे से वह उठीं और बाहर दरवाजे की ओर बढ़ने लगी।अचानक से पैर कलाम के हाथों से टकरा गई और वह झट से उठ बैठा..."अम्मी कुछ चाहिए था आपको!मुआफ करें मुझे नींद लग गई थी।आप ठीक तो हैं बुखार उतर गई आपकी अल्लाह का लाख -लआख शुक है।आप मुझसे कहें क्या चाहिए।मैं फौरन लेकर हाज़िर हो जाऊँगा।"
"कमाल!इधर आ मेरे बच्चे और मुझ नादान को मुआफ कर।मैंने कितने सख़्त व्यवहार किए हैं तुम्हारे साथ।तुमने हमेशा ही मुझे अम्मी कहा और अम्मी सा ही सम्मान दिया।अल्लाह रहम करे मुझपर,मेरी सजा कुछ कम कर दें।"
"अम्मी! आपने मुझे बेटा कहा मुझे और क्या चाहिए।आप तो मेरी अम्मी ही हैं।अपने होश संभाला तो आपको ही देखा।अब्बू मुझे कितना प्यार करते हैं।मुझे यतीम को आपलोग ने घर दिया, परिवार दिया।"
"एक लगाऊँगी तुझे जो खुद को यतीम कहा कभी।हम सब तेरे ही तो हैं।हमारे अलावा अब बड़ी बी की भी ज़िम्मेवारी संभालनी होगी तुझे।एक वायदा कर हम रहे न रहें तू हमेशा उसका साथ निभाएगा।तू कह दे तो सुकून से मर पाऊंगी।हमारे सिवा और कौन देखभाल करेगा उसकी। मिज़ाज से कितनी चिड़चिड़ी हो गई है।"
कमाल अम्मी की गोद में सर रखते हुए रो पड़ा।"अम्मी मुझे छोड़कर जाने की बात ना करें। अभी-अभी तो मुझे मेरी अम्मी मिली है।आप ऐसी बातें कैसे कर सकती हैं।मुझपर भरोसा नहीं।वह मेरी बड़ी बी हैं मैं उनका ख्याल नहीं रखूंगा तो और कौन रखेगा।"
ना जाने कबसे गुलाम अली उन दोनों के बीच की वार्ता के गवाह रहे....
दस्तक देने के लिए हाथ बढ़ाया ही था कि माँ-बेटे के इस आत्मिक मिलन को देख भावविभोर हो गए।रहा न गया और कह पड़े "आखिर मेरी गैरमौजूदगी में माँ-बेटे में सुलह हो ही गई।मुझे मालूम होता तो मैं कबका बाहर चला जाता।खैर ख़ुदा की मर्जी!'जब जागा तभी सवेरा।'.."
कमरा ठहाके से गूँज उठा था।इस ठहाके को सुनकर बड़ी बी दौड़़ती हुई आयी और पुछ बैठी-"क्या माजरा है!जो ठहाके लिये जा रहे हैं।"
बड़ी बी को अपने पास बुलाती हुई अम्मी ने कहा-"बड़ी बी अगर तुम्हें कोई आपा कहे तो कैसा लगेगा बताओ।"
"आपा!..कौन कहेगा।मैं तो बड़ी बी हूँ और बड़ी बी ही रहूँगी।समझीं आप।"
"हाँ भई! तुम हम-सब के लिए बड़ी बी ही रहोगी पर कोई आएगी जो तुम्हें आपा कहकर बुलाएगी।जल्द ही मैं और गुलाम अली इसपर अमल करेगें।"
कमाल आश्चर्य से भरकर पुछता है-"कौन आने वाली है अम्मी!आप बस बता दें मैं स्टेशन से लिवा लाऊँगा।कब आ रही हैं मुझे बता दीजिए।"
"हाँ,हाँ!लाना तो तुझे ही है पर पहले हमें पहले करनी होगी।बात बनेगी फिर वो आएगी।एक-दो दिन में हम-सब वहाँ जाएंगे।"
"अम्मी पहेलियां ना बुझाएँ, साफ-साफ बताएँ।मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा।क्या कोई बहनें आने वाली है..?"
"नहीं पगले!तेरे लिए दुल्हन लाऊँगी।अब मुझसे घर के काम नहीं होते।अपनी सारी जिम्मेदारी दुल्हन को दे दूँगी और हम दोनों हज पर चले जाएंगे।"
"कोई दुल्हन-वुल्हन नहीं आने वाली,आपलोगों को किसी भी तरह की परेशानी है तो मैं हूँ न।आप हज पर जाना चाहें तो जरुर जाएँ।
अम्मी ने डांट लगाई। "खबरदार जो ऐसा कहा।दुल्हन आएगी तो आएगी।क्यूँ बड़ी बी।तुम्हें भी आपा कहलवाना है न!अब तुम ही समझाओ इसे।"
मान जा कमाल,मैं भी बड़ी बी कब तक रहूँगी।आपा सुनने को कान तरस रहे हैं मेरे।अब से मुझे आपा ही कहोगे तुम!समझें।मैं भी इस ग़म से बाहर निकलना चाहती हूँ।जब इस बगिया में फूल खिलेंगे मैं उनके साथ खूब खेलूँगी।
सपना चन्द्रा
कहलगांव
भागलपुर, बिहार