भोजपुरी कविताएं

अरुणिता
द्वारा -
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चुरा ले गइल

धान, पान, मुस्कान 

सून कइलस 

गाँव घर जवार 

कर देलस 

तार - तार रिसतन के 

हँ! बाजार।


अभाव 

हमरा खातिर माने 

ना रखे 

किसान पूत हईं 

हमहूं किसान,


अभाव त हमार जिनिगी के 

दूसर नाम ह 

अभाव ना मार सकी हमरा के 

बाकिर डर 

जे घर बनावत जा रहल बा 

मन में 

ओकरा से बड़ी डर लागेला।


हमरा नइखे मालूम 

काहे?

बाकिर असीम सुख दे जाला 

मन के 

केहू गाँव, घर, टोला के 

अनायासो घरे आ जाला 


आवे वाला अतिथि में 

खाली एगो मनई ना

गाँव जवार 

स्थानीय बाजार 

खेत बधार 

चइता आ फाग के राग 

काकी भउजी के अनुराग 

लउकेला 


बुझाला इलाका के मनई ना 

गंउवे उठ के आ गइल बा 

शहरिया में हमरा घरे,

अतिथि चलियो गइला के बाद 

छोड़ जाला 

बसमतिया चाउर के सुगंध जस 

गाँव के माटी से उठत 

सुवास।


मनई 

खोज रहल बा 

मनई के 


कहाँ भेंटाता?

एगो मुक्कमल के कहो 

अधूरो आदमी 

सभे त पहिर लेले बा 

नकाब 

आ उहो बदल लेता 

हर चउराहा पर।


कनक किशोर 

राँची, झारखंड 



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