एक प्रश्न

अरुणिता
द्वारा -
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लड़कियाँ 

अब छुई-मुई नहीं रहीं।

वे पढ़ती-लिखती हैं,

काबिल बनती हैं। 

वे नौकरी करती हैं,

वे व्यापार करती हैं,

वे करती हैं 

मुश्किल से मुश्किल काम।


लड़कियाँ 

अब अबला नहीं रहीं,

वे सबल हैं, सशक्त हैं।

वे लड़ती हैं 

परिवार से,

समाज से,

दुनिया-जहान से 

और बनाती हैं 

अपने लिए रास्ते।


पर एक प्रश्न 

मुझे भीतर तक झकझोरता है,

बार-बार, लगातार।

यही सशक्त लड़कियाँ 

क्यों कमजोर पड़ जाती हैं 

एक दुष्ट बलात्कारी के सामने?

वे क्यों नहीं फोड़ डालती उसका सर? 

क्यों नहीं नोच डालती उसका चेहरा 

अपने तीखे नाखूनों से? 

क्यों नहीं उसकी आँखों में घुसा देती 

अपनी उंगलियाँ? 

उस विपदा काल में 

क्यों उनका साहस दे जाता है जवाब? 

क्यों, आख़िर क्यों? 


बृज राज किशोर ‘राहगीर’

ईशा अपार्टमेंट, रुड़की रोड, 

मेरठ (उ.प्र.)-250001


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