कुछ पल की है ये जिंदगी,
कुछ पल मुझे अपने संग बिताने दो,
कुछ पल मुझे खामोशियों में,
खुद से रूबरू हो लेने दो।
अब तक जीए हैं दूसरों के लिए,
कुछ पल अपने लिए भी जीने दो,
ज़िन्दगी के शोर में कभी खुद को सुना ही नहीं,
कुछ पल के लिए मुझे खुद को भी सुनने दो।
आईने को कभी ठीक से देखा ही नहीं,
कुछ पल के लिए आईने से बातें करने दो,
दूसरों को खुश करने में निकली सारी जिंदगी,
कुछ पल अपने आप को खुश करने दो।
सब को खुश करते करते हम तन्हा हो गए,
कुछ पल इस तन्हाई से बातें करने दो,
मुद्दतों से ख्वाइश थी खुश रहने की,
कुछ पल मुझे खुद के संग बिताने दो।
ऐ जिंदगी! देखे थे कुछ ख्वाब मैंने भी,
कुछ पल उन ख्वाबों से रूबरू हो जाने दो,
ख्वाब पूरे होंगें कि नहीं,पता नहीं,
कुछ पल उन ख्वाबों में जिंदगी जी लेने दो।
अपने लिए जीना अगर खुदगर्जी है,
तो सच कहती हूं ऐ जिंदगी!
बेशक खुदगर्ज हूं मैं,हां खुदगर्ज हूं,
कुछ पल मुझे अपने संग बिताने दो।
नीतू रवि गर्ग "कमलिनी"
चरथावल मुजफ्फरनगर,
उत्तर प्रदेश