हिम्मत

अरुणिता
द्वारा -
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छोटा सा ही तो फर्क़ है, 

मुझमे औऱ संसार में 

 रात दोनों के लिए है, 

जहां सोता मैं जागता हूं 

रास्ते दोनों के एक है, 

फर्क़ है बस मुकाम का 

 जहां हद में चलता है, 

मैं हद के पार भागता हूं 

 दुनियां बदल जाती है, 

अक्सर वक़्त के साथ 

 फर्क़ बस इतना है, 

मैं वक़्त बदलना चाहता हूं 

 एक अरसा बीत जाता है, 

इतिहास बनाने में 

सोच से मैं अपनी, 

इतिहास बदलना चाहता हूं 

 नींद में सपने देखना तो, 

हर शख्स की आदत है 

 पर सपनों के आगे, 

मैं अपनी नींद को भुलाता हूं 

 बड़े बड़े पेड़ों को झुकते हुए देखा है,

 हवाओं से 

 तूफानों में भी न बुझे, 

मैं एसा दीप जलाता हूं   


नितिन तिवारी 

इंदौर मध्य प्रदेश 


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