होशियार सिंह अपनी होशियारी पर बहुत इतरा रहा था। ऐसा भी होता है जब आदमी के पास पैसा हो जाता है तब वह होशियार भी हो जाता है, कहावत के अनुसार 'आई कौड़ियां आई बुद्धि, गई कौड़ियां गई बुद्धि!"
होशियार सिंह की तो बात ही अलग है, उसका तो नाम ही होशियार है। होशियारी में वह अपने नाम से भी दो कदम आगे है।
होशियार सिंह का दिल एक मृगनयनी पर आ गया था। गोरी, छरहरी, किशोरी वाह क्या घने काले घुंघराले बाल थे उसके! वह चलती थी तो हंसिनी भी लजा जाती थी। उसका भी दिल होशियार सिंह की दौलत पर आ गया था।
उसने खूब तरसाया होशियार सिंह को, होशियार सिंह उसके रास्ते में दो - दो, चार - चार घंटे खड़ा रहता था। कोई पूछता, "क्यों खड़े हो होशियार सिंह भाई?"
होशियार सिंह उस आदमी से कोई न कोई झूठा बहाना बना दिया करता था। होशियार सिंह प्रेम में दीवाना उस मृगनयनी पर सबकुछ लुटाने को तैयार था।
वैसे होशियार सिंह किसी को कौड़ी - छदाम नहीं देता था। आशिक मिजाजी उसकी सबसे बड़ी कमजोरी थी, जिसे वह सबसे बड़ी कामयाबी मानता था।
एक दिन होशियार सिंह उस वरारोहे से प्रणय निवेदन कर बैठा। वह तो यही चाहती थी; उसे तो मनचाहा वरदान मिल रहा था। उसने यह भाव अपने अंदर ही छुपाए रखा बाहर नहीं आने दिया।
होशियार सिंह को उसने बताया था कि, "मेरे घर में कोई नहीं रहता है, मैं अकेले ही रहती हूं वहीं आ जाना; अपने मन मर्जी का कर लेना! हां मुझे खुश रखना होगा, बाकी मैं आपको खुश रखूंगी!"
आना - जाना शुरू हो गया था। होशियार सिंह की जमा-पूंजी में से धन निकलने लगा था। सबसे पहले होशियार सिंह की होशियारी जगी थी जब, मृगनयनी को उसने मोबाइल फोन दिलाया, मोबाइल फोन ज्यादा नहीं वही कोई पच्चीस - तीस हजार रुपए के आसपास का रहा होगा।
दूसरी होशियारी, होशियार सिंह ने तब दिखाई जब, सोनार के यहां जाकर कान, नाक के गहने दिलवाए उसे! कपड़ों की दुकान में भी हजारों के कपड़े दिलवाए!
मोबाइल के हो जाने से वीडियो काल होती थी। मृगनयनी को देख - देखकर होशियार सिंह लट्टू रहता था। सारी मांगें मृगनयनी की पूरी हो जाती थी। मृगनयनी को काफी अनुभव था पैसे निकालने का, ऐसा लगता है वह बहुत पहले से इस काम में लग चुकी थी।
ऐसा जादू वाक्यों का मृगनयनी जानती थी कि, जब वह जो चाहती थी किसी भी हालत में, चाहे खेत गिरवी रखना पड़े, चाहे खेत बेचना ही क्यों न पड़े होशियार सिंह उसे वह चीज लाकर देता था।
समय बीतता गया। होशियार सिंह के पास अब चंद खेत ही बचे थे। मृगनयनी की शादी शहर में तय हो गई थी। मृगनयनी को आखिरी मौका था, जिसे वह बेकार नहीं जाने देना चाहती थी। मृगनयनी ने अपनी नयन कटार होशियार सिंह के ऊपर चलाया! होशियार सिंह ने मृगनयनी के ऊपर सबकुछ न्यौछावर करने के लिए तैयारी बना लिया था।
मृगनयनी ने कहा, "एक बार मेरी खरीदारी करवा दो फिर अब कभी नहीं कहूंगी!"
होशियार सिंह ने अपनी होशियारी दिखाई थी। होशियार सिंह ने मृगनयनी से कहा था कि, "क्या शादी के बाद भी तुम मुझसे मिला करोगी?"
मृगनयनी ने प्यार से कहा था कि, "हां, क्यों नहीं; जब - जब मायके आया करूंगी, तब - तब मौका निकालकर जरूर मिलूंगी!"
मृगनयनी सिर्फ होशियार सिंह को पढ़ा रही थी। वह शादी के बाद होशियार सिंह से क्यों मिलना चाहेगी? मृगनयनी इस बार उसे कंगाल बनाकर सदा के लिए अलविदा कहने का पूरा मन बना चुकी थी।
सभी मृगनयनियां ऐसा करती हैं। शास्त्रों में लिखा है कंब ऋषि ने एक उदाहरण में तमिल रामायण में लिखा है कि, 'मालदार, धनी व्यक्ति का, जब तक धन है एक चतुर - चालाक स्त्री उसके साथ बहुत ही करीब से अपनाकर सबकुछ समर्पित करती रहती है, जैसे ही उसका धन चुका वह स्त्री पल्ला झाड़कर, दूसरे की गोद में जाकर बैठ जाती है। उसकी तरफ देखना भी पसंद नहीं करती है!'
ऐसा ही मृगनयनी ने होशियार सिंह के साथ किया। अंतिम खरीदारी में कोई कोर - कसर नहीं छोड़ी थी मृगनयनी ने!
अब हींग निकल चुकी थी, खाली डिब्बा बचा था होशियार सिंह!
मृगनयनी की शादी हो गई थी। शहर में पति के साथ मृगनयनी मजे से रहने लगी थी। मृगनयनी ने अपनी सिम बदल दिया था।
मृगनयनी अभी भी मोबाइल फोन के माध्यम से दूसरे होशियार सिंह खोजने के प्लेटफार्म फेसबुक मैसेंजर के माध्यम से आदतन बनाती है, अपनाती है। भूलकर भी होशियार सिंह को मौका नहीं दिया करती है।
होशियार सिंह भी फेसबुक मैसेंजर में काफी मशक्कत करता है, हाथ-पांव मारता है। होशियार सिंह गालियों के शिवाय कुछ भी नहीं पाया करता है।
होशियार सिंह सबकुछ लुटा चुका है। अब तो उम्र भी बढ़ गई है। कैसे - मैसे भी कोई लड़की नहीं मिली है कि, बांकी के बचे दिन अपनी गृहस्थी वह चला सके, अब कुछ भी नहीं बचा था इसलिए किसी ने भी उसे अपनी लड़की ब्याहने की मंजूरी नहीं दी है।
परिवार, गांव के बड़े - बूढ़ों ने उसे समझाया था जिनका कहा उसने नहीं माना था। अब तो थोड़ी सी जमीन के टुकड़े में सालभर खाने के लिए अनाज भी नहीं होता है। मेहनत - मजदूरी पहले भी कभी नहीं किया था अबकी उम्र के चढ़ाव में तो मेहनत - मजदूरी होने से रही!
होशियार सिंह नाम का होशियार बचा है। कोई होशियार सिंह की ओर देखता तक नहीं है। होशियार सिंह अकेला बैठा सोचता रहता है। कभी किसी आयोजन में भरपेट भोजन करता है, वरना कभी एक टाइम, कभी आधा - आधा पेट दोनों टाइम खाता है।
होशियार सिंह अब सोचता, पछताता रहता है; वैसे, 'अब पछताए होत क्या, जब चिड़िया चुग गई खेत!'
होशियार सिंह के लिए अब बचा है लोगों की गुलामी करना, अभाव के आंसू बहाना!
होशियार सिंह या तो आधी - अधूरी उम्र में मर जाएगा या तो फिर घुट - घुटकर मरेगा; कोई पानी नहीं देगा, भूखों मर जाएगा!
होशियार सिंह की होशियारी धरी की धरी रह गई है। होशियार सिंह अब शून्य में निहारता, जाने क्या सोचता रहता है। किसी से बात करना चाहता है, किसी को पास बुलाता भी तो कोई उसके पास नहीं जाता है!
डॉ0 सतीश "बब्बा"
पता - डॉ0 सतीश चन्द्र मिश्र,
ग्राम + पोस्ट = कोबरा,
जिला - चित्रकूट, उत्तर - प्रदेश,
पिनकोड - २१०२०८,