नाट्य प्रस्तुति: कलंकित मैं नही

अरुणिता
द्वारा -
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 नव दृष्टि टाइम्स की मीडिया पार्टनरशिप में अवलोकन थियेटर मंच, दिल्ली की नाट्य प्रस्तुति व रंगकर्म को पूर्णतया समर्पित रंगकर्मी सम्मान समारोह । *  

नाटक के लेखक डा. प्रकाश श्रीवास्तव, एवम इसके निर्देशक पंकज एस. दयाल व सहायक निर्देशक नीता गुप्ता, राजेश आहूजा , पुनीत रस्तोगी थे ।

इस नाटक की केंद्रीय भूमिका में  रश्मि है । रात को ट्यूशन पढ़ कर आ रही रश्मि को रास्ते में 4 गुंडे घेर लेते है, वो  बच कर भागना चाहती है ,लेकिन वो गुंडे चार थे, उसका पीछा कर गुंडे पकड़ कर ले जाते हैं। ये नाटक का पहला दृश्य  था । चारों गुंडे मिलकर उसका बलात्कार करते हैं । बेहोश हो जाने पर सुनसान  सड़क  पर छोड़ कर भाग जाते है । होश आने पर अपने को व्यवस्थित कर पैदल घर पहुंचती है । ये दूसरा दृश्य था, इसी दृश्य में पहले दिखाया गया कि रश्मि के परिवार के लोग, मां, सविता वर्मा के रूप में  नीति शुक्ला, पिता  गिरीश वर्मा के रूप में विवेक यादव, छोटी बहिन रूही के रूप में निशा गौतम और घर के नौकर गणेश के रूप में, अश्विन सक्सेना, पीड़िता रश्मि वर्मा  के रूप सरिता झा, सामूहिक बलात्कार की शिकार, रश्मि रात्रि के दूसरे पहर में घर पहुंचती है। जब की रात्रि के पहले ही पहर में रोजाना घर वापिस आ जाती थी। जब रात्रि का पहला पहर गुजर जाता है, तो मां बाप का चिंतित होना स्वाभाविक थ।  रश्मि के ट्यूशन और लेट घर आने पर  पिता आक्रोश में पत्नी सविता पर दोषारोपण करते हैं रूही बहिन की सहेलियों के फोन नंबर ढूंढ रही है, मां फोन कर एक दो से किसी बहाने से रश्मि के बारे में पता करती है लेकिन सब बेकार घर का नौकर गणेश भी काफी दूर ढूंढ कर आता है, लेकिन अंत  में पिता गिरीश अपने स्कूटर से ढूढने जा रहे होते हैं तभी रश्मि की सिसकने की आवाज रूही सुनती है, मां से दरवाजा खुलवाती है, तो रश्मि बड़ी बदहाल स्थिति में बदहवास सी खड़ी है, मां बहिन उसको पकड़ पर लाते हैं, मां के कंधे का सहारा मिलते ही रश्मि फूट फूट कर रो पड़ती है। यहां से प्रारंभ होता है। मां, पिता, बहिन का अभिनय कौशल। सविता जो काफी देर से अपनी उदिग्नता को दबाए रही थी, अब रो रो कर बेहाल हो जाती है। और बहिन भी अपनी रुलाई नही रोक पाती। रो रो के सब का बुरा हाल। पिता गिरीश भी सिर पकड़ कर एक कुर्सी पर बैठ जाते हैं। प्रेक्षागृह  में सन्नाटा। दर्शकों की भी आखें इस मार्मिक दृश्य से जरूर भीगी होंगी। ये उन तीनों  चारों के अभिनय की पराकाष्ठा थी दूसरे दिन अखबार की  सुर्खियां बन जाती है। सामूहिक बलात्कार की शिकार रश्मि वर्मा, लेकिन उसका असली नाम छुपा दिया गया है, आज रश्मि को देखने के लिए उसके कॉलेज का प्रेमी वरुण अपने मां बाप को पसंद कराने और रोका करने को आ रहा होता है। रश्मि अखवार में अपना नाम न देख कर  एक कमरे में जोर जोर से रोने लगती है। मां बाप चुप कराने की कोशिश करते हैं, तो उनको रोक कर बोलती है, मुझे जी भर के रोने दो, आप यहां से चले जाओ। वो चले जाते है। यहां ख्यालों में वही चारों गुंडे आते हैं, उसे परेशान करते है। जब वो चलें जाते है। फिर रोना शुरू करती है, और रोते रोते किसी निष्कर्ष पर पहुंच कर दृढ़ता के साथ खड़ी होती। इतने में रूही भी आ जाती है, उसको तैयार करती है । क्योंकि अभी कुछ देर में रश्मि के सगाई वाले आने वाले  हैं। प्रेक्षागृह  में सन्नाटा । दर्शकों की भी आखें इस मार्मिक दृश्य से जरूर भीगी होंगी । ये उन तीनों  चारों के अभिनय की पराकाष्ठा थी|

वरुण, चेतन शर्मा, वरुण के पिता, ललित गोय। वरुण की मां, साधना चोपड़ा, थोड़ी औपचारिकता के पश्चात वरुण के परिवार वाले, रश्मि को पसंद कर लेते हैं। रश्मि के पिता गणेश से मिठाई मंगा कर सब का मुंह मीठा कराते हैं। वरुण के पिता ललित जी गणेश को बोलते हैं "गणेश इस मुबारक अवसर पर हम सब की मेरे मोबाइल से एक फोटो लो" अचानक से रश्मि खड़े होकर बोलती है । ठहरिए!  क्या आप किसी बलात्कार की शिकार लड़की से शादी करना चाहेंगे? सविता रश्मि को रोकती है तो रश्मि मां से बोलती है, मां मुझे बोल ने दो, इस शहर में जिस लड़की का बलात्कार हुआ है, वो मैं हूं। अब वरुण के पास जाकर बोलती है, बोलो वरुण, क्या तुम अब भी मेरे साथ शादी करोगे? वरुण, कुछ नही बोलता अपनी मां की ओर देखत। मां, वरुण का हाथ पकड़ कर, पति को इशारा कर चुप चले जाते है। रश्मि रोती रहती है। गिरीश फिरअपना सिर पकड़ कर बैठ जाते है। मां बेटी के पास आ कर सीने से लगा कर रोने लगती है। दृश्य समाप्त

रश्मि का घर - कॉल बेल बजती है। घर के अंदर से आवाज आई, कौन?  बाहर से आवाज आई, पुलिस । दरवाजा रश्मि के पिता गिरीश जी खोलते हैं, आइए अंदर आइए। देखिए, इंस्पेक्टर साहब, जो हमें बोलना था, वो सब हम लिख कर आप को दे चुके है। आप हमें बार बार पूछताछ कर के परेशान मत करो ।

रश्मि  की मां -  पूछ लेने दो।  रूही, जा रश्मि को बुला ला| 

रश्मि  -  मां ये क्या पूछताछ करेंगे। सवाल जबाव तो मैं करूंगी इनसे। क्या यही है शहर की लड़कियों की सुरक्षा ।

शाम 8 बजे ही कुछ गुंडे एक लड़की का अपहरण कर लेते है,  क्या कर रही थी आपकी पुलिस, क्या यही है गुंडों में पुलिस का खौफ। क्या कर रही हैं आप की जांच एजेंसियां जो गुंडों को अभी तक पकड़ नहीं पाई। देखिए पुलिस कोई जादूगर नहीं। इसमें समाज की भी जिम्मेदारी है। वो गुंडे इसी समाज से रईस बाप की औलाद है।

आप मेरे सवालों का जवाब दीजिए।  जल्द ही वो गुंडे  सलाखों के  पीछे होने।

क्या सिर्फ 4 लड़के थे?  कितनी उम्र  होगी?  20/25  तक।  क्या उन्होंने शराब पी रखी थी? और कोई  पहचान? रश्मि  - एक ने गले में मोटी सोने की चैन पहन रखी थीं। बाकी मुझे याद नहीं। आपके सामने आएं तो आप पहचान लेंगी? उस दिन 8 से 9 बजे तक सी सी कैमरे 10 गाड़ियां निकली है।

कुछ लाल काली ग्रे आप की कार का रंग कौन सा है।

ठीक से नोट नहीं किया शायद काली ग्रे थी । अच्छा अपना मोबाइल नंबर दे दो। कुछ और जरूरी हुआ तो फोन पर पूछ लेंगे।

इंस्पेक्टर के रोल में राजेश जी ने भी महसूस किया। और रश्मि पर हावी होने की कोशिश की। लेकिन रश्मि ने एक के बाद एक सवाल इंस्पेक्टर पर उड़ेल कर इंस्पेक्टर को उभरने नहीं दिया। लेकिन अंत आते आते इंस्पेक्टर रश्मि  पर अपनी अभिनय  कौशल से  हावी हो गए और हर सीन में अपनी कुशलता की छाप छोड़ने वाली सभी को अपनी अभिनय दक्षता से दबाने वाली  रश्मि  इंस्पेक्टर के सामने दब सी गई। और विशेष तार्किकता पूर्ण अभिनय द्वारा इंस्पेक्टर पर हावी ना हो सकी। इस गमगीन वातावरण को हल्की फुल्की हास्य चुटकियों द्वारा माहौल हल्का करने का  हवलदार का प्रयास सराहनीय था , लेकिन इंस्पेक्टर की प्रताड़ित नजरों से हवलदार सहम जाता था। हालांकि ये मीनू स्क्रिप्ट का ही हिस्सा था, इसलिए इंस्पेक्टर को दोष नहीं दे सकते हैं। पूरे सीन को सफल बनाने और नाटक को गतिमान बनाए रखने में सभी पात्रों ने अपना अपना योगदान दिया।

इसमें एक बाप की वेदना को रश्मि के पिता गिरीश पूरी तरह से व्यक्त करने में सफल रहे। इसमें गिरीश को पुलिस के सामने अपना दर्द उभारने में रश्मि की मां सविता ने गिरीश की खूब मदद की। और पुलिस इंस्पेक्टर को ज्यादा हावी नहीं होने दिया। उसे दबा दिया।

नेता जी का किरदार निभाया था, बाबू भाई सिंधी ने ये रंगमंच के सशक्त हस्ताक्षर है। इनको कोई भी किसी भी तरह की भूमिका दे दो, हर चरित्र में फिट होकर पात्र शीघ्र ही आत्मसात कर पूरे मंच पर कब्जा कर छा जाते है ।ऐसा नहीं कि अपने सामने वाले कलाकार की बोलती बंद कर देते हैं। सामने वाले को भी सपोर्ट कर उसको मंच पर खेलने का मौका देते हैं और संवादों में ही अपने चरित्र को निखारते हैं। उन की मंच पर अदायगी गजब की होती है। अपने संवाद की अदायगी से अपने अभिनय कौशल को निखारते हैं। दर्शक भी जल्दी ही इनके दीवाने हो जाते हैं। 

 वरुण का परिवार नाटक को गति देता ।लेकिन कोई विशेष उदाहरण पेश नही कर सका, ललित जी ने कुछ रोचक बनाने का प्रयास किया लेकिन सफल नहीं हुए। क्योंकि उनको सहारा नहीं मिला। यह दृश्य नाटक को गतिमान बनाने की एक कड़ी बन कर रह गया। लेकिन रश्मि का परिवार अपनी छाप छोड़ गया। उसका श्रेय सविता और उनकी बेटी रश्मि को जाता है। निशा गौतम रूही और पिता गिरीश, विवेक यादव मूक रह कर भी अपनी स्थिति दर्ज कराने मैं सफल रहे, जब की वरुण चेतन शर्मा मूक ही बन कर रह गए। क्योंकि इस दृश्य को कड़ी मान कर उछाल ने के अवसर गौण रह गए। 

नेता जी की सहायिका नेत्री के रूप में  वंदना सोलंकी थी। जो हास्य की प्रतिमूर्ति का स्तरीय अभिनय कर हास्य  स्थितियां उकेर कर दर्शकों के आकर्षण का केंद्र बन रही थी। नेता जी को भी  पूर्णतया अपनी अभिनय क्षमता को उभारने में पूरी पूरी मदद भी कर रही थी। वंदना सोलंकी 

रश्मि का परिवार इस नाटक  की धुरी था, इस बात को पूरे परिवार के सदस्यों ने हृदय बैठा लिया। नाटक की छोटी छोटी स्थिति को परखा जांचा और उसे आत्मसात कर लिया। इस परिवार का हर दृश्य शुरू से अंत तक इतना अधिक पका हुआ था कि नाटक देख कर ऐसा लगता था कि पूरे परिवार के सदस्यों  में अपने अपने अभिनय कौशल को अधिक से अधिक निखार कर अपनी भावनाओं में लपेट कर अभिनय के चरमोत्कर्ष पर पहुंचने की होड़ लगी हो। सविता, नीति शुक्ला भी अपनी दोनों बेटियों की मन: स्थिति के हर क्षण को जी रही थी, व भावनात्मक  स्तर पर दृढ़ता से खड़ी होकर अपनी दोनों बेटियों का साथ दे रहीं थीं, इसके उलट गिरीश, विवेक यादव सविता के पति, विरोध करना चाहते है। लेकिन पत्नी के पारिवारिक समर्पण के आगे झुक कर अपने अंतर्द्वंद की असहज स्थिति को मौन रह कर अपने अभिनय द्वारा  सफल कलाकार के रूप में अपने आप को स्थापित  करते है।  

रश्मि, सरिता झा इस नाटक की केंद्रीय भूमिका में है, उसे एहसास है कि पूरे नाटक को उसे अपने कंधों पर प्रारंभ से अंत तक लेकर चलना है। वैसे नाटक की पूरी कहानी ही उसके इर्द गिर्द घूमती हैं, सामूहिक बलात्कार की शिकार पीड़ित रश्मि जब अपनी पहचान उजागर कर देती है, तो समाज और उसके कर्णधार उसका जीना मुहाल कर देते है। जब वो अपनी पढ़ाई पूरी करने कॉलेज जाती है, कॉलेज के प्रिंसिपल, पुनीत रस्तोगी रश्मि को कॉलेज में प्रवेश ही नहीं करने देत। अपने ऑफिस से बाहर लाकर, कॉलेज की इज्जत आबरू, और दूसरे छात्रों के माहौल और उनके भविष्य की दुहाई देकर प्यार से भी और अपना प्रिंसिपल वाला रोब से भी डांट डपट कर भगा देते हैं। यहां पर रश्मि ने अपनी पीड़ित होने का का दर्द  जिया है। जिससे प्रिंसिपल रस्तोगी जी को अपनी अभिनय प्रतिभा का दिखाने का पूरा पूरा मौका मिला है, अपने प्यार, गुस्से, प्रिंसीपल का रोब, डांट डपट के रूप में अपना अभिनय कौशल दिखाने का अवसर, रश्मि के दर्द ने दिया है। यहां पर रश्मि, सरिता झा,सामूहिक बलात्कार के दर्द को अपनी अभिनय प्रतिभा से जिया है। उसके बाद हाई स्कूल में पढाने नौकरी मांगने जाती है, तो यहां की प्रधानाध्यापिका,वंदना सोलंकी रश्मि को कलंकित मान कर अपना रोब और गुस्सा दिखा कर भगाना चाहती है, लेकिन रश्मि के रोने गिड़गिड़ाने से द्रवित होकर रश्मि को प्यार से समझाती है, अपनी नौकरी स्कूल व यहां पढ़ने वाले बच्चों पर तुम्हारा कलंकित होने का अभिशाप का बच्चों एवम स्कूल के भविष्य पर पड़ने वाले असर का वास्ता देकर नौकरी देने से इन्कार कर देती है, रश्मि भी अपना पीड़िता का दर्द लिए समाज के रंग ढंग पर कुछ संकल्प लिए उठ कर चल  देती है । इसमें रश्मि ने अपने दर्द और रोने के प्रलाप से वंदना सोलंकी को अपनी अभिनय क्षमता के छितेरे रंग दिखाने का अवसर दिया, वंदना ने भी अपने अभिनय कौशल से रश्मि को भी अपनी अभिनय कुशलता दिखाने का मार्ग प्रशस्त किया। 

कॉलेज से मन कर ने पर हताश ,निराश सी रश्मि अपने घर जा रही होती है। कि रास्ते में उसकी नजर एक बोर्ड की ओर जाकर टिक जाती है। उस पर लिखा था, एनजीओ महिलाओं के लिए। बोर्ड पढ़ कर उसकी सारी हताशा, निराशा काफूर हो जाती है, उसका चेहरा एकदम से खिल जाता हैं, वो अंदर प्रवेश करती है, बीच में इसकी संचालिका अर्चना कुमारी मिल जाती हैं, देखते ही पहचान लेती है, कि ये कलंकित रश्मि वर्मा  है। अर्चना उसको बीच में रोक कर बहाने से  गेट के बाहर ले आती है, रश्मि ही पूछती कि मेम आपकी संस्था महिलाओं के लिए काम करती है, मुझे भी कुछ काम दो, मुझे नौकरी की जरूरत है। अर्चना जी बोलती, रश्मि हमारे यहां तुम जैसी कलंकित लड़कियों के लिए कोई काम नहीं है। हम बेसहारा महिलाओं के लिए काम करते हैं, जिनका दुनिया में कोई सहारा नहीं है। हम तुम्हारी कोई मदद नहीं कर पाएंगे रश्मि कहती हैं आप भी तो महिला हैं, महिला होने के नाते मेरी मदद करो मुझे कोई भी काम दे दो। रश्मि तुमने अपनी पहचान उजाकर कर ऐसा घृणित कार्य किया है कि कोई महिला भी तुम्हारी मदद तो छोड़ो, तुम्हारे साथ भी खड़ी नही हो सकती। हमारी तो एनजीओ ही बदनाम हो जायेगी। हमारी महिलाओं पर तुम्हारा क्या असर पड़ेगा, इसलिए रश्मि हम तुम्हारी कोई मदद नहीं कर सकते। हमें माफ कर दो। लेकिन मेम  ....सॉरी रश्मि , और सॉरी बोल कर गेट के अंदर चली जाती हैं। यहां पर अर्चना ने अपनी पूरी प्रतिभा को उभार कर रश्मि पर हावी होने की कोशिश की, लेकिन रश्मि ने अपनी दयनीय स्थिति को उभार कर  अभिनय के स्तर पर अर्चना को बिलकुल भी अपने ऊपर हावी नहीं होने दिया 

शराबियों का दृश्य ,बिलकुल शराबियों की ही तरह था। सभी अपनी अपनी प्रतिभा से अपने आपको एक दूसरे पर भारी पड़ने की कोशिश करते नजर आए। ये शराबी वही लोग थे, जिन्होंने रश्मि के साथ मिलकर बलात्कार किया था, इसमें मुख्य अभियुक्त एक बहुत बड़े प्रख्यात मीडिया प्रमुख का बेटा शम्मी था, इसी मीडिया के पत्रकार ने रश्मि का इंटरव्यू छापा था, रश्मि के इसी इंटरव्यू से प्रभावित हो कर रश्मि से शादी की। इतने दिनों बाद भी पुलिस इन पर हाथ नहीं डाल पाई थी। इस खुशी में, और पत्रिका में रश्मि के इतने अधिक फोटो और एडवरटाइजमेंट वाली फोटो देख देख कर शराब पिए जा रहे थे। ये पार्टी भी मीडिया प्रमुख वालिया के बेटे के घर पर हो रही थी।  वालिया जी घर आते हैं, तो शराब पीने वालों का डांटते हैं, कि पार्टी तुम आए दिन करते रहते हो, अपने कैरियर पर ध्यान दो। ये सभी अपने अपने बहाने बनाकर पार्टी। करने की बात बोलते रहते हैं। वालिया जी सब समझते हुए चले जाते है।  इसमें सभी ने अपने अपने अभिनय कौशल से   शराबियों का अभिनय कर एक दूसरे से आगे जाने के प्रयास में संलग्न रहे। लेकिन अभिनय के स्तर पर कोई भी आगे नहीं निकल नहीं पाया। 

चलिए अब चलते हैं कलंकित नाटक के अंतिम पायदान, यानी अंतिम दृश्य पर, इसमें देश के बहुत बड़े मशहूर मीडिया प्रमुख वालिया जी * कलंकित मैं नहीं *  की मुख्य पात्र रश्मि का शहर में हुए सामूहिक बलात्कार की शिकार बहादुर वा निर्भीक एवम बलात्कारियों के खिलाफ सिर उठा कर उनको मुंह तोड़ जवाब  देने वाली रश्मि द्वारा उठाए कई क्रांति कदमों एवं बलात्कार की शिकार अन्य लड़कियों को नई दिशा देने वाली रश्मि के सम्मान में वालिया जी द्वारा कुछ महत्व पूर्ण कदमों की घोषणा कर उसको समाज में स्थापित करने के लिए सराहना करते हुए आर्थिक मदद की भी घोषणा करते है।  ये वो ही मीडिया हाउस है जिसके पत्रकार ने रश्मि के घर जाकर बलात्कार हो जाने के बाद सोशल मीडिया पर अपनी पहचान उजागर कर बोला था कि,मै क्यों अपना चेहरा छुपाऊं, चेहरा वो छुपाए जिन्होंने ये घिनौना काम किया, मैं पीड़ित हूं समाज को बताऊंगी मेरे साथ बलात्कार हुआ है। पत्रकार अभिषेक रश्मि से उल्टे सीधे सवाल पूछ कर रश्मि को निरुत्तर करना चाहता है।लेकिन रश्मि, सरिता झा बड़ी ही चतुराई और बेबाकी से सभी तरह के सवालों के जवाब देती है। पत्रकार रश्मि की वाकपटुता से प्रभावित होकर रश्मि के पिता से रश्मि की  बहुत  तारीफ करता है, बोलता है, रश्मि बहुत समझदार चतुर  है। अपनी बात को बिलकुल स्पष्टता के साथ निडर और निर्भीक तरीके से बोलती है।  मै इसकी तारीफ करते हुए रश्मि को  सलूट करता हूं। रश्मि के पिता बने हुए गिरीश  यादव, अपनी पीड़ा व्यक्त करते हुए दर्द भरे लहजे में  बोलते है कि इस तारीफ और सैल्यूट का क्या फायदा,  कौन इससे शादी करेगा, पत्रकार बोलता है, आप चिंतित और परेशान ना हों।  हमारे समाज में बहुत पढ़े लिखे अच्छे विचारवान युवा है रश्मि का ये इंटरव्यू पढ़ कर बहुत से युवा रश्मि से शादी कर लेंगे।  पिता बोलते है, तुम करोगे रश्मि से शादी,  तुम भी युवा हो ,पढ़े लिखे हो, तारीफ भी करते हो रश्मि को सैल्यूट भी करते हो। मै मै मैं कर हकलाने लगता है।  पत्रकार बोलता है 'मैं तो पत्रकार हूं , इंटरव्यू लेने  आया हूं , मैं कैसे  कर सकता हूं', अच्छा मैं चलता हूं और तेजी से बाहर निकल जाता है और गहरी सांस लेकर अपने को संयत कर सोचता है, पिता की पीड़ा और शादी न हो पाने के दर्द का अहसास करके विचलित हो जाता है। फिर विचार करता है और किसी निर्णय पहुंच कर रश्मि के घर के दरवाजे को ठक ठक करता है और अंदर जाकर  रश्मि से बोलता है "रश्मि मैं करूंगा तुमसे शादी" फिर रश्मि के पिता की ओर मुड़ कर बोलता है "आपने मेरी आंखे खोल कर मेरी आत्मा को झकझोर दिया है" मैं करूंगा शादी, मै बनाऊंगा रश्मि को अपनी जीवन संगनी  रश्मि जी एक गिलास पानी मिलेगा। रश्मि पानी देती है, पिता बोलते, बेटा कुछ मीठा भी लेती आती। पिता का चेहरा खिल उठा था। पत्रकार भी मुस्कराते हुए बोलता है। रहने दो। ये पानी ही मुझे बहुत मीठा लग रहा है ।

अभिषेक और रश्मि की शादी के बाद चलते हैं। वालिया जी द्वारा आयोजित कार्यक्रम में जहां रश्मि जी को क्रांतिकारी कदम उठाने एवं देश में  महिलाओं के साथ सामूहिक बलात्कार की घटनाएं आए दिन घटित हो रही हैं उन महिलाओं को रश्मि द्वारा समाज में नई दिशा देने के लिए ,  देश के प्रमुख मीडिया हेड वालिया जी द्वारा रश्मि को सम्मानित किया जा रहा है। मंच पर एक ओर रश्मि का पूरा परिवार,अभिषेक उसके साथ रश्मि, पिता गिरीश, मां सविता, छोटी बहिन रूही, साथ में नौकर अश्विन सक्सेना। उनके पीछे एक ओर वालिया जी बेटे शम्मी के साथ उसके तीनों दोस्त। 

वालिया जी, पोडियम पर खड़े होकर, दोस्तो, आज का ये कार्यक्रम रश्मि को सम्मानित करने व साथ ही हमारे ही मीडिया ग्रुप के एक पत्रकार अभिषेक को भी हम सम्मानित करने जा रहे हैं ,जिसने रश्मि का इंटरव्यू लिया ये इंटरव्यू हमारी एक पत्रिका में छपा है। वो पत्रिका बहुत बिकी, हमें कई बार छापनी पड़ी हमारी भारी इनकम बढ़ी। हमारे पत्रकार ने रश्मि के इंटरव्यू में रश्मि के विचारों से इतना प्रभावित हुए की हमारे पत्रकार अभिषेक ने रश्मि से शादी कर ली। यहां हम उसके भी क्रांतिकारी कदम उठाने के उपरांत हम उसको भी यहां सम्मानित कर रहे हैं।हमने रश्मि के नाम पर बलात्कार की शिकार लड़कियों के लिए एक ट्रस्ट बनाया है उस  ट्रस्ट का नाम हमने रश्मि के नाम पर रखा है, उस ट्रस्ट का नाम होगा। रश्मि अस्मिता ट्रस्ट। ये ट्रस्ट सभी बलात्कार की शिकार लड़कियों की आर्थिक मदद के साथ उनका मार्ग दर्शन भी करेगा  

सब से पहले हम रश्मि जी को मंच पर आमंत्रित करेंगे रश्मि जी को मेरा बेटा शम्मी आर्थिक मदद के तौर 5 लाख का चेक प्रदान करेंगे।  शम्मी मंच पर आकर अपनी कैप से अपना चेहरा छुपाने की कोशिश करते हुए रश्मि को चेक देता है। रश्मि उसके चेहरे से कैप हटाती है तो शम्मी को पहचान लेती है, उसका गिरेबान पकड़ मंच पर उसे पीटना शुरू कर देती है। सब को बताती है। ये है वो जिसने मेरे साथ अपने दोस्तों के साथ मेरा बलात्कार किया था। अभिषेक भी पकड़  कर पीटना शुरू देता है। फिर पुलिस को भी फोन करता। रश्मि के पिता व छोटी बहिन भी पीटते हैं, इसी बीच मंच से शम्मी के सभी दोस्त भाग जाते है, शम्मी की पिटाई  रश्मि कर रही है उसके पिता और उसकी छोटी बहिन,अभिषेक भी मिल बुरी तरह कूट रहे है।

वालिया अभिषेक को चीफ एडिटर बनाने का ऑफर देता है, अभिषेक मना कर देता है, वालिया जी बोलते है नौकरी से निकाल दूंगा तुम्हें कोई नौकरी भी नही देगा अभिषेक बोलता है मैं लात मारता हूं तुम्हारी नौकरी को, उधर रश्मि कोऑफर देते हैं तुम्हें ढेर सारा पैसा दूंगा। कितना पैसा चाहिए बोलो मेरे बेटे को छोड़ दो।  रश्मि मना कर और जोर से पीटती है। पुलिस आकर शम्मी को बचाती है। वालिया जी पुलिस इंस्पेक्टर को ऑफर देते हैं। इस केस को यही खत्म कर दो  जितना पैसा कहोगे दूंगा। इंस्पेक्टर मना कर देता है। तो वालिया जी बोलते हैं इंस्पेक्टर सोच लो नही तो पीएमओ फोन करके तुम्हारी वर्दी उतरवा दूंगा। जो करना है करो, मुझे अपना काम करने दो। शम्मी को पुलिस अपने साथ ले जाती है। रश्मि  भीड़ को संबोधित कर बोलती है।  मैं आपसे आप सबसे पूछना चाहती हूं समाज ने सारे नियम कायदे महिलाओं के लिए बनाए है। पुरुष के लिए क्यों नहीं, बलात्कार होने पर महिला के टेस्ट होते है। पुरुष का कोई टेस्ट नही होता, बलात्कार की शिकार लड़की को घुट घुट कर, अपनी पहचान छिपा कर जीना पड़ता। पुरुष सीना तान कर समाज में घूमता है। समाज फिर भी लड़की को ही कलंकित कहता है, और मैं कलंकित नहीं, कलंकित मैं नहीं और रो पड़ती है जोर से, अभिषेक उसको पकड़ कर गले लगाता है, तमाम मोबाइलों की लाइट जल पड़ती है। हर आदमी रश्मि की फोटो लेना चाहता है। अभिषेक रश्मि को पकड़ कर भीड़ से निकाल ले जाता है, यही मंच की लाइट बंद हो जाती है। ये था नाटक  * कलंकित मैं नहीं * का अंतिम दृश्य। पूरा ऑडिटोरियम दर्शकों की तालियों से काफी देर तक गढ़गड़ाता रहता है। 

फिर उसके बाद सभी कलाकार मंच पर आते हैं तो एक बार फिर ऑडोरियम तालियों से गूंज उठता है। सभी कलाकारो के सम्मान में, मंच पर नाटक के निर्देशक पंकज एस दयाल को आमंत्रित करते हैं, फिर नाटक के राइटर डॉ .प्रकाश श्रीवास्तव आते है। पंकज जी सभी दर्शकों का आभार प्रकट करते हुए, इस नाटक की मीडिया पार्टनर और चीफ एडिटर नीतू सिंघल जी को मंच पर आमंत्रित कर दो शब्दों में कलाकारों के  अभिनय की छठा के बारे में बोलने को  पंकज जी आग्रह करते है। नीतू जी रश्मि को अपने पास बुला कर उसके दोनों कंधों पर हाथ रख कर बोलती है।  ये बलात्कार की शिकार बहादुर लड़की अपनी पहचान सोशल मीडिया पर डाल कर पूरे समाज को ही कलंकित कर उससे टकराने का, मुकाबला करने की  ठान लेती है सबसे लड़ने के बाद अपराधी को पकड़ कर, उसको लज्जित कर पुलिस के हवाले करती है।  समाज से ,दुनिया को टक्कर दे कर समाज को नई दिशा दिखाती है ये वीरांगना बहादुर लड़की, अब समाज की हर लड़की को अपनी अस्मिता बचाने के लिए खुद ही आगे आना होगा, ये है रश्मि सरिता झा का आवाह्न ये लड़की पूरे नाटक को अपने कंधो पर ढोकर ले जाती है। बाकी सभी कलाकारों ने अपनी महत्वपूर्ण भूमिका से पूरे नाटक को गतिशील बनाएं रखा नाटक को कही से भी ढीला नहीं होने दिया। दर्शक भी बहुत अच्छे थे। बीच बीच में हर सीन में तालियां बजा कर सभी कलाकारों का हौसला बढ़ा रहे थे।

मैं साथ ही पुरुष समाज की भी आभारी हूं जो अभिषेक बन कर हम महिलाओं को आगे बढ़ कर सहारा बन रहे हैं। अब मैं दर्शकों से दो मिनट का टाइम और लुंगी। मैं अपनी तरफ से  सभी कलाकारों को सम्मानित करना चाहती हूं। पंकज जी ने अपने कलाकारों का नाम पुकारा  डॉक्टर प्रकाश उनको सर्टिफिकेट देते जा रहे थे। नीतू सिंघल जी एक एक को स्मृति चिह्न देकर सम्मानित कर रही थी। अंत में पंकज जी नीता गुप्ता का अपने सहयोगी के तौर पर परिचय कराया कि नाटक के सभी कलाकारों को नियंत्रित कर उनको अभिनय कौशल को प्रदर्शित करने में मेरी मदद की।

सभी कलाकारों को सम्मानित करने के पश्चात नाटक के निर्देशक पंकज एस दयाल ने नाटक के लेखक प्रकाश श्रीवास्तव का एक अच्छी कहानी  कलंकित के लिए आभार व्यक्त किया। साथ ही नाटक की प्रस्तुति में नाटक की मीडिया पार्टनर बन कर तथा सभी कलाकारों को सिल्वर मेडल देकर सम्मानित किया एवम नाटक के निर्देशक पंकज एस दयाल को गोल्डन अवॉर्ड तथा आर्थिक मदद के तौर एक लिफाफा दिया, इसके लिए उनको बहुत बहुत धन्यवाद दिया गया, नाटक के सहायक निर्देशक राजेश आहूजा जी ने चीफ एडिटर आफ N.B.T न्यूज पेपर दिल्ली व कलंकित नाटक की मीडिया पार्टनर नीतू सिंघल जी को अवलोकन मंच दिल्ली की ओर से अवॉर्ड व अवलोकन मंच के प्रेसिडेंट  पुनीत रस्तोगी जी ने अवलोकन स्मृति ट्रॉफी लेकर सम्मानित किया। नीतू जी ने निर्देशक पंकज जी की भूरि भूरि प्रशंसा की इसके बाद अवलोकन थिएटर मंच दिल्ली के फाउंडर निर्देशक के पंकज एस दयाल जी के रंग जगत में  50 वर्ष पूर्ण होने के उपलक्ष्य में अवलोकन अवॉर्ड्स फंक्शन प्रारंभ हुआ।  अवॉर्ड्स फंक्शन के लिए अवलोकन की रिसर्च टीम ने दिल्ली के रंगमंच के समर्पित 40 निर्देशकों  के चयन के किया गया लेकिन जब इन निर्देशकों को अवलोकन की कार्य समिति में विचार विमर्श के लिए रखा गया और कार्य समिति के द्वारा निर्धारित नियमों के अंतर्गत कसा गया तो इनकी संख्या 35 हो गई। फिर इसको अवलोकन बोर्ड के समक्ष रखा गया और इसको बोर्ड ने अपने निर्धारित नियमों से कस कर अवलोकन के लिए किए गए त्याग, तपस्या के लोगों का भी चयन किया और निर्देशकों की संख्या 21 कर दी गई ।

अब मंच पर उद्घोषक अवलोकन के फाउंडर निर्देशक व अवलोकन के फाउंडर प्रेसिडेंट डॉ. प्रकाश श्रीवास्तव थे। पंकज जी के रंग जगत में 50 वर्ष पूर्ण होने पर अवलोकन मंच द्वारा ये अवॉर्ड्स फंक्शन किया जा रहा है। उद्घोषक द्वारा सम्मानित होने वाले निर्देशक का नाम पुकारे जाने पर गोल्डन जुबली नाटक * कलंकित मैं नहीं * निर्देशक पंकज एस दयाल उनको अवलोकन अवॉर्ड्स एवं * कलंकित मैं नहीं * नाटक के लेखक डॉ. प्रकाश श्रीवास्तव अवलोकन ट्रॉफी देकर रंग जगत को पूर्णतया समर्पित निर्देशकों को सम्मानित कर रहे थे ।

जिनको सम्मानित किया गया उन सभी के नाम - 

1.राजनारायण दीक्षित 2.सुनील चौहान 3.योगेश जलुथरिया 4.विपिन कुमार सेठी 5.दिनेश अहलावत 6.संजय अमन पोपली 7. गजराज नागर 8. अरविंद गौड़ 9. काजल सूरी 10. प्रमोद कुमार शर्मा 11.अमर शाह 12. राजेश बब्बर 13. अमूल सागर 14. मन्नू सिंह रावत 15. संजना सिंह तिवारी 16. राजेश कुमार सिंह 17. राजेश कसाना 18. ईश्वर शून्य 19. दीपक गुरनानी 20. शिकज़ शर्मा 21. अशरफ अली 

अवलोकन थियेटर मंच से निर्देशक-

 1. नीता गुप्ता 2. शिल्पा वर्मा 3. अनूप गुप्ता 4. अक्षित चौहान 5. मनोज मलिक 6. साहिल मंजू खन्ना 7. भारत भूषण भारद्वाज 8. कीर्ति प्रकाश 9. पायल सरकार 10. सुधांशु पुनीत श्रीवास्तव

विशेष अतिथि -   नीतू सिंघल, मुख्य संपादक, एन.बी.टी.

वीणा वादिनी चौबे, प्रेसिडेंट, आकाशदीप फाउंडेशन

सुनील कुमार, प्रेसिडेंट, आकाश एन .जी. ओ.

अनिल अग्रवाल, प्रेसिडेंट, बुक बैंक 

सुषमा रानी, प्रेसिडेंट, मीडिया क्लब, दिल्ली

अवलोकन थियेटर मंच से - 

डॉ प्रकाश चंद श्रीवास्तव

सुमन कुमार झा

देश बंधु गुप्ता

राजेश कुमार आहूजा और पुनीत रस्तोगी

अवॉर्ड्स फंक्शन के सफलता पूर्वक संपन्न होने के पश्चात अवलोकन मंच के प्रेसीडेंट पुनीत रस्तोगी जी नाटक के निर्देशक पंकज एस दयाल जी व नीता जी को नाटक कलंकित मैं नहीं की सफलता पूर्वक प्रस्तुति के लिए आभार व्यक्त किया। तथा सभी दर्शकों व सम्मानित होने आए हुए सभी निर्देशकों को हार्दिक धन्यवाद देते हुए उन सभी का आभार जताया।

अवलोकन मंच बोर्ड के चेयर मैन राजेश कुमार आहूजा जी ने आए हुए सभी निर्देशकों तथा सभी दर्शकों को विदा करते हुए उन सभी को धन्यवाद एवं गिफ्ट पैक देकर विदा किया।



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