काश हम पागल होते

अरुणिता
द्वारा -
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हंसते गाते बिना बात के खुश होते

काश कि हम पागल होते


उच्चाकांक्षाओं से ना घायल होते

काश कि हम पागल होते


समझ ना पाते लोगों के ताने

करते काम सब मनमाने


सब हमको बस दूर भागते

तब शायद हम खुद को पा जाते


हर पल समाज के ना पहरे होते

दिल के ज़ख्म ना इतने  गहरे होते


मर्यादाओं की भी ना मजबूरी होती

सोच और शब्द के बीच ना कुछ दूरी होती


ना ऊंचे ऊंचे सपने होते

झूठ मूठ के ना अपने होते


जान बूझ कर  अंजान न बनते

झूठी महफिल के मेहमान न बनते


षडयंत्रों के व्यूह से घिरे न होते

हम कुछ पाने को इतना गिरे न होते


बिन मर्जी कोई काम न करते

बड़े बड़े लोगो से तनिक ना डरते


मन पर इतने अवसाद ना होते

बोझिल से दिन रात ना होते


मन में इतने अंतर्द्वंद ना होते

जीवन में इतने  दंद फंद ना होते


 ऊंची चौखट हो तो ही माथा टेके

काश हम इतने होशियार ना  होते



प्रज्ञा पांडेय मनु

वापी, गुजरात 


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