अंधकार में दीप समान
जो आते राह दिखाने
भाग्यवान हैं वह प्राणी
जिनको शिक्षक मिल पाते ॥
मन को अपने मथ - मथ कर
नवनीत प्रकट कर जाते
ज्ञान अग्नि में आहुति देकर
वे दीपशिखा बन जाते ॥
कभी पिता कभी मात
हमारे कभी सखा बन जाते
भटक राह से जायें कभी
तो सच्ची राह दिखाते ॥
कभी धमकी और कभी रुसआई
कभी उपनाम धराते
कुछ अच्छा करने की जिद में
गाली भी सह जाते ॥
ना खुलकर हँस बोल सकें
ना पहन सकें मन माफिक
उत्सव मेलों में नाच ना सकें
बन्धन में बँध जाते ॥
देवेन्द्र पाल सिह बर्गली
नैनीताल उत्तराखण्ड