
गांव के हृदय स्थल में एक वैष्णव परिवार रहता है ।उनके घर में दो मेहमान रहते हैं ।
एक सिम्मी मौसी और दूसरा तोता मीतू ,दोनों का परिवार से गहरा नाता है ।ये दोनों परिवार के सदस्य की तरह परिवार में दखल रखते हैं और एक दूसरे से बहुत प्यार करते हैं ।मीतू अभी बोलने के लिए सिख रहा और सिम्मी मौसी परिवार में घुल मिल गई है ।यह जीवन के उनके संघर्ष पलों के अब साथी ही हैं जो उनकी सुबह शाम के नन्हे दुलारे हैं ।एक दिन अपने परिवार से बिछड़ कर वह भोली बिल्ली रानी वैष्णव परिवार में पहुँच जाती है और धिरे-धीरे हल्के जुबान से मियाऊँ - मियाऊँ की मधुर आवाज से नंदिता की दिल को जीत लेती है धीरे - धीरे बिल्ली रानी अपनी अनोखे खूबसूरती से पुरे परिवार में रंग जमा लेती है । परिवार के सदस्य के रूप में रहने लगती है।
काफी कुछ दिन बाद परिवार के हिस्से बनने के बाद उसका नाम सिम्मी मौसी पड़ जाती है और वह नाम से अब रहने लगती है। घर में बेधड़क इधर उधर घुमती रहती है ।नंदिता भी खाली समय में सिम्मी मौसी के साथ अपना हंसी खुशी समय बिताकर खुश रहने लगी। सिम्मी मौसी की आव-भाव रहन सहन से दो माह बाद पता चला की सिम्मी मौसी गर्भ में है
तब से उसकी देख रख बढ़ गई अब वह ज्यादा उछल-कुद नहीं करती बस थोड़ा-बहुत इधर उधर घुम लेती है और नंदिता ने उनकी सेवा में कोई कसर नहीं छोड़ी अपने ध्यान रखते हुए सिम्मी मौसी को भी दोपहर को उसके मन पसंद बिस्किट गुड - डे खिलाने लगी ।और परिवार की सदस्य की मुंह बोली बन गई घर में वह मौज से रहने लगी ।नंदिता उसके बच्चों की जन्म की इंतजार कर रही है।
प्रेम एक-दूसरे को जोड़ती हैं आज सिम्मी मौसी नंदिता के पास रहकर अपना जिन्दगी खुशी से गुजार रही है और नंदिता भी जब भी फुरसत में होती है तो
एक दूसरे के साथ समय का आनंद ले लेते हैं।इतने दिनों में एक दूसरे के पक्के मित्र बन गए थे ।सिम्मी मौसी और नंदिता सहेली की तरह ब्यावर करते हैं ।
जीवन संघर्ष धैर्य से सफल होती है यह बात सिम्मी मौसी को समझ आ गई थी और वह अपने परिवार की तरह अपना जीवन गुजार रही थी सिम्मी मौसी की अब घर आंगन की शान बन गई थी अपनी खूबसूरत आवाज मियाऊँ मियाऊँ से पूरे परिवार की खुशियों में शामिल है । वह खुशी से जीवन गुजार रही है । परिवार में सिम्मी मौसी के बच्चे जन्म की इंतजार है ।
लक्ष्मी नारायण लहरे 'साहिल'
साहित्यकार पत्रकार
गांव / डाक घर -कोसीर सारंगढ़
जिला : सारंगढ़ -बिलाईगढ़
छत्तीसगढ़