
अंकिता जैन अवनी
बहुत दिया
भीड़ में अकेली थी मैं, तूने अपने वजूद का आभास दिया, जब हारकर गिरने लगी मैं, तब तूने ही जीत का विश्वास दिय…
भीड़ में अकेली थी मैं, तूने अपने वजूद का आभास दिया, जब हारकर गिरने लगी मैं, तब तूने ही जीत का विश्वास दिय…
जवानी से गुफ्तगू करें, बचपन की यादें, वहीं बुढ़ापे को याद आये, जवानी में किए वादे। आगे बढ़ते कदम हर बार रुकते…