भीड़ में अकेली थी मैं, तूने अपने वजूद का आभास दिया, जब हारकर गिरने लगी मैं, तब तूने ही जीत का विश्वास दिया, कैसे कह दूं कुछ नहीं दिया…
Read more »जवानी से गुफ्तगू करें, बचपन की यादें, वहीं बुढ़ापे को याद आये, जवानी में किए वादे। आगे बढ़ते कदम हर बार रुकते हैं मुड़ते हैं और पीछे देखत…
Read more »
Social Plugin