अनिता सिंह

प्रकृति की माया

वृक्षों पर हरियाली थी शाखाएं ज्यूं हरे-भरे सुकुमार आनंद विभोर हो झूमे पत्ता-पत्ता शीतल मंद जो बहे बयार। देख निज रुप मन…

प्रकृति की व्यथा

शहरीकरण की दौड़ में, बहुत आगे निकल गए हम... पीछे छूट गए हैं, अब तो सारे गाँव हमारे! नित नए अविष्कार पर... जश्न मना रहे …

कर अथक प्रयास

हारकर न हो तू कभी उदास, कर पुनः अथक प्रयास! ये जंग आख़िरी जंग नहीं, जीवन के हर मोड़ पर... आते नित नए जंग है! रख हौसला, मत…

सत्य का सूर्य

सत्य का तेज है सूर्य समान , इसकी तपिश के आगे... झूठ का बादल कहाँ टिक पाता है?   करे लाख कोशिश अपने बचाव में…

बावला मन

मन मेरा बावला है सखी! माने ना, इत- उत उड़ जाए... मैं भागूँ पीछे- पीछे इसके, हाथ मेरे ये कभी ना आए...!   कब भ…

शीत-ऋतू

जाड़े का मौसम यानि कि रजाई में दुबककर देर तक सोना, गरमागरम चाय की प्याली, धूप की गुनगुनाहट, गर्म पानी से नहान…

जीवन-पथ

ये जीवन पुष्पित सेज नहीं, पथ में बिखरे विघ्नों के शूल हजार! लक्ष्य उसे ही मिलता है जो हर चुनौती को करे हँसकर स्वीकार!…

बेटी की चाहत

बाबुल मैं हूँ... अधखिली- सी एक कली! फूल बनकर मुझको भी... बगिया में अपने तुम, खिल जाने दो न!   बाबुल मैं ह…

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