अनिल कुमार केसरी

अग्निपथ पर पथिक

सुलगते हूए अंगार रास्तों पर, कदम-कदम फटते ज्वालामुखी। शूल-सी तीक्ष्ण शिलाएँ पथ में, तपती आग-सी, पैरों तले जमीं। ब…

बेटी थी मैं माँ!

बेटी भी तुम्हारा अंश है , माँ! तुम तो समझो , तुम भी कभी किसी की बेटी थी। पिता तो अपने पुरुषार्थ से मजबूर है , …

तुम्हारे सपने

तुम्हारे सपने... , मेरे तकीय की बगल में , रातभर खेलते रहते हैं। मैं बार-बार , उन्हें सुलाता हूँ ; वे भागते हैं ,…

शब्द बोलते है

शब्द बोलते है हर कहानी , हर किस्से को। बातों में लिपटी बातें , हर तज़ुर्बे को कहती है। आदमी... यों ही सलाहकार नहीं , …

मुख़्तसर ज़िन्दगी

विराम लगा दो ; ज़िन्दगी   की बेतहाशा दौड़ती रफ़्तार पर , कि जमानेभर से राहत नहीं है , इस मुख़्तसर ज़िन्दगी   को। …

वक्त-वक्त की बात है

आदमी का गम नहीं बिकता, आदमी की हँसी बिक जाती है; गम के खरीददार नहीं मिलते, हँसी, हँसते-हँसते खरीदी जाती है।  …

मैं भी अब पाषाण हूँ

एक इंसान मर गया मुझमें, जिसको जिंदा देखा था मैंने कभी; कुछ भग्नावशेष बाकी बचे, पाषाण ही पाषाण है मुझमें अभी; …

जीवन एक खिलौना है

जीवन एक खिलौना है, सुख-दुःख का सारा रोना है। तू किस फिक्र में बैठा? होगा, जो जीवन में होना है।   कल जीवन के…

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