
काव्य-सरिता
तेरे हिस्से की चाँदनी
तेरे हिस्से की चाँदनी, गर होती मैं इक बार। नील गगन ले जाती तुझको, अपने पंख पसार। या कहीं पर बैठ किनारे, श्वेत छीर …
तेरे हिस्से की चाँदनी, गर होती मैं इक बार। नील गगन ले जाती तुझको, अपने पंख पसार। या कहीं पर बैठ किनारे, श्वेत छीर …
लिखना चाहूँ गीत प्रेम का , पर फिर भी लिख ना पाऊँ मैं। कैसे लिख दूँ शब्दों में कि , कितना तुझको चाहूँ …