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आलोक रन्जन 'इन्दौरवी' लेबल वाली पोस्ट दिखाई जा रही हैंसभी दिखाएं
ग़ज़ल
बचपन
सब्र का  बांध तोड़ते क्यूँ हो
आदमी को आदमी समझा करो