आलोक रन्जन 'इन्दौरवी'

ग़ज़ल

चराग़ जिसने जलाया उसे तलाश करो अंधेरा किसने मिटाया उसे तलाश करो बहुत उदास है बस्ती का हर तरफ मंजर धुवां ये किसने उठाय…

बचपन

बचपन

भागादौड़ी बहुत सह लिया किस उलझन में पलते हैं मेरे प्यारे मन चल अब तो फिर बचपन में चलते हैं मेरे प्यारे,,,, …

सब्र का  बांध तोड़ते क्यूँ हो

सब्र का बांध तोड़ते क्यूँ हो

सब्र का   बांध तोड़ते    क्यूँ हो अपना ही राज खोलते क्यूँ हो   इस सियासत का भरोसा क्या है हर सुबह कड़वा बोलते…

आदमी को आदमी समझा करो

आदमी को आदमी समझा करो

आदमी को आदमी समझा करो नफरतों से खेल मत गंदा करो   जिंदगी के रूप हैं कितने नये तुम किसी भी रूप में महका करो …

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