आशा भाटिया

कन्या का मान

कुछ दिन पहले मैं टैक्सी के द्वारा दिल्ली से बाहर जा रही थी। मैंने आने-जाने की टैक्सी की थी। टैक्सी में ड्राइवर ने राधा …

थोड़ा सा ख़ालीपन

ख़ाली हाथ नहीं हूँ फिर भी ना जाने क्यूँ …..! कुछ ढूँढती रहती हूँ अपने हाथों की लकीरों में जो चाहा ,बढ़ कर पाया । फिर भी…

वो शाम कुछ अजीब थी

वो शाम कुछ अजीब थी ……! रात के क़रीब थी । रात गहरा रही थी शायद कुछ बता रही थी । इस ढलती रात में समेट रही थी कुछ ख़्वा…

तेरे बिन….!

जो मिल गई, वो मोहब्बत कैसी । जिसे पा लिया, वो महबूब कैसा । मोहब्बत में ना हो कसक ना हो दर्द ,ना हो जुदाई । वो मोहब्…

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