काव्य-सरिता
कब तक तोड़ोगे स्त्री को जिससे टूटकर तुम पैदा हुए हो, झांक अपने अंदर आज तूम जिस अस्तित्व पर इतराते हो जिस पौरुष को दिखल…
द्वारा -
अरुणिता
जुलाई 01, 2024
ग़ज़लनामा
सफ्हा -ए - हस्ती, इंसान की बस्ती वुजूद ना बचता, जो न होती मस्ती। मिरी सन - ए विलादत, अहम नहीं अहम की बात है, जिंदगी ह…
द्वारा -
अरुणिता
अक्टूबर 05, 2023