कनक किशोर

स्त्री

कब तक तोड़ोगे स्त्री को जिससे टूटकर तुम पैदा हुए हो, झांक अपने अंदर आज तूम जिस अस्तित्व पर इतराते हो जिस पौरुष को दिखल…

ग़ज़ल

सफ्हा -ए - हस्ती, इंसान की बस्ती वुजूद ना बचता, जो न होती मस्ती। मिरी सन - ए विलादत, अहम नहीं अहम की बात है, जिंदगी ह…

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