केशव शरण

ग़ज़ल

मुहब्बत, दोस्ती के रास्ते मैं बहारें लूटने के वास्ते मैं यही या रास्ता जब याद आया गया पहचान अगले रास्ते मैं तुम्हा…

ग़ज़ल

खिड़की पर सुन्दर बाला है पर दरवाज़े पर ताला है   ख़ूब रहा दिल का चक्कर ये जिसने माथा मथ डाला है   रहना ही…

अभी तक

इक लक्ष्य दिखाकर न दिखा यार अभी तक मैं देख रहा राह लगातार अभी तक   हम रोज़ मिले रोज़ मिले और गले भी अफ़सोस कि…

क्या बाँटोगे?

क्या लगाकर हिसाब बांटोगे चार में इक गुलाब बांटोगे बाल जिसके सफ़ेद जिस वय में हर किसी को ख़िज़ाब बांटोगे क…

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