हरे - हरे सखुए के पत्तल, याद हैं मुझे, खाई है जिसपर मैंने जलेबियाँ, आते थे बनकर दूर के, पहाड़ों में बसे गाँव से, टूटी सड़कों और पगडंडियों…
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