
जयश्री बिरमी
कैसे भूलूँ तुझे ऐ माँ
छुटपन में आता न था खाना न ही चलना और बैठना पैदा हुए तो एहसास न था जीने का आगाज न था तूने ही संभाला था तूने ही…
छुटपन में आता न था खाना न ही चलना और बैठना पैदा हुए तो एहसास न था जीने का आगाज न था तूने ही संभाला था तूने ही…
जहां सुमति होती हैं वहां संपत्ति भी होती है,परिवार में एक विचार होने से एक सा ही व्यवहार होता है…