
व्यंग्य
घर जैसा भोजन
न जाने किसने क्या सोच कर कहा होगा “घर की मुर्गी दाल बराबर” …… क्योंकि जिसे न मुर्गी पसंद है न दाल, अर्थात मुझ जैसा कोई …
न जाने किसने क्या सोच कर कहा होगा “घर की मुर्गी दाल बराबर” …… क्योंकि जिसे न मुर्गी पसंद है न दाल, अर्थात मुझ जैसा कोई …
हमारे मोहल्ले के लल्लू जी ,नाम के भले ही लल्लू लाल हों लेकिन हैं बड़े काम की चीज। चुस्त, दुरुस्त, फुर्तीले, समाज स…
जब किसी की विदेश में नौकरी लगती है तो हमारे प्राय: मुँह से निकलता भला विदेश में रहकर नौकरी क्यों करना ? अपने दे…