
बृज राज किशोर ‘राहगीर’
युग-युगान्तर साक्षी हैं
कान में डालो रुई, या बंद कर लो द्वार घर के। युग-युगान्तर साक्षी हैं, सत्य के निर्बाध स्वर के।। पाँव ही होते नहीं त…
कान में डालो रुई, या बंद कर लो द्वार घर के। युग-युगान्तर साक्षी हैं, सत्य के निर्बाध स्वर के।। पाँव ही होते नहीं त…
पाँच बजते-बजते दिल्ली की भीड़-भाड़ से निकल आए तो लगा रात के दस बजे तक देहरादून पहुँच ही जाएँगे। दिल्ली-मेरठ एक्स…
हृदयांगन में बादल बन छा जाना रे। कवि, गीतों से प्रेम-सुधा बरसाना रे।। सम्बन्धों की क्यारी में अब पुष्प नहीं, नागफ…
जगह-जगह दागों वाला यह, मलिन वसन बदलें अब साधो। देख लिया दुनिया का मेला, आ घर लौट चलें अब साधो।। जीवन भर ह…
मैं नहीं धृतराष्ट्र का प्रिय पुत्र दुर्योधन, जिसे सब कुछ मिला था जन्म से ही। मैं नहीं गुरु द्रोण का प्रिय शिष्य अर्…