कान में डालो रुई, या बंद कर लो द्वार घर के। युग-युगान्तर साक्षी हैं, सत्य के निर्बाध स्वर के।। पाँव ही होते नहीं तो, झूठ के पदचिह्न कैसे? जो न…
Read more »पाँच बजते-बजते दिल्ली की भीड़-भाड़ से निकल आए तो लगा रात के दस बजे तक देहरादून पहुँच ही जाएँगे। दिल्ली-मेरठ एक्सप्रेस-वे से होते हुए डेढ़ घंटे…
Read more »हृदयांगन में बादल बन छा जाना रे। कवि, गीतों से प्रेम-सुधा बरसाना रे।। सम्बन्धों की क्यारी में अब पुष्प नहीं, नागफनी वाले पौधे उग आते हैं। स्वार…
Read more »जगह-जगह दागों वाला यह, मलिन वसन बदलें अब साधो। देख लिया दुनिया का मेला, आ घर लौट चलें अब साधो।। जीवन भर ही रहे खोजते, मृग बनकर मरुथल …
Read more »मैं नहीं धृतराष्ट्र का प्रिय पुत्र दुर्योधन, जिसे सब कुछ मिला था जन्म से ही। मैं नहीं गुरु द्रोण का प्रिय शिष्य अर्जुन, जो रहा प्रभु स्नेह का भ…
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