मोती प्रसाद साहू
ईश्वर कन्या जन जाने दे
मास अषाढ़ मेघ गगन हैं तपती धरती अवां सरिस है इसको जल की चाह जगी है ईश्वर मेघ बरस जाने दे...! आम्र मञ्जरी लगे टिकोरे । फ…
मास अषाढ़ मेघ गगन हैं तपती धरती अवां सरिस है इसको जल की चाह जगी है ईश्वर मेघ बरस जाने दे...! आम्र मञ्जरी लगे टिकोरे । फ…
स्नेह का विनिमय बड़ा विचित्र प्रेम की व्याख्या यहां सचित्र। दो पृथक- पृथक लघु बालरूप सभी में ईश्वर अंश अकूत । देखते …
वसन- हीन हो देहालिंगन प्रेम नहीं है ध्यान रखें। देह -देह का परिचय होना कहलाता है भोग सखे।। इस परिचय का जीवन कितना देह स…
रात्रि के तीसरे पहर निकला उसे तलाशते हुए गांव- नगर की सीमा पार करते हुए दूर कोसों दूर ... निर्जन जंगलों व…
छंद पर छपी थी उनकी अनेक पुस्तकें फूंक नहीं पाए एक भी छंद में प्राण। वास्तु की बारीकियां देखने वाले नहीं बना पात…