स्नेह का विनिमय बड़ा विचित्र प्रेम की व्याख्या यहां सचित्र। दो पृथक- पृथक लघु बालरूप सभी में ईश्वर अंश अकूत । देखते लुप्त हुए अवसाद। हृदय का भोज्य…
Read more »वसन- हीन हो देहालिंगन प्रेम नहीं है ध्यान रखें। देह -देह का परिचय होना कहलाता है भोग सखे।। इस परिचय का जीवन कितना देह संग ढल जाता है। आत्मिक- मिलन चि…
Read more »रात्रि के तीसरे पहर निकला उसे तलाशते हुए गांव- नगर की सीमा पार करते हुए दूर कोसों दूर ... निर्जन जंगलों व पर्वतों के बीच मिली लेटी हु…
Read more »छंद पर छपी थी उनकी अनेक पुस्तकें फूंक नहीं पाए एक भी छंद में प्राण। वास्तु की बारीकियां देखने वाले नहीं बना पाते सपनों का महल। नौ सौ पच्चीस…
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