राजीव कुमार

उलझती गई जिन्दगी

उलझती गई जिन्दगी बदनसीबी रूलाती चली गई। दावा करते थे जो मददगार होने का उन्हीं के हाथों सताती चली गई। हर गिरह ऐसी …

नहीं वह सम्मुख

नहीं वह सम्मुख अचरज की न बात मेरी व्यथा से है विमुख मन पर कुठाराघात| मेरी व्यथा का रहा न भान भूल गए मेरा त्याग बलिदा…

जीवन की यही पराकाष्ठा

जीवन का वह क्षण जब खत्म होगा जीवन सारी कामनाएं सारी इच्छाएं अंत कर देगी मरण| सारा संचय- संशय निर्मूल होगी निश्चय ना …

आवाज़ उठाना है

अस्तित्व पे कुठाराघात अब हुई असहनीय बात आत्याचारिओं को सबक सीखाना है आवाज़ उठाना है सखी आवाज़ उठाना है .   …

राही

भूले भटके पथ के राही थी तुम्हारी कौन सी चाह पूरा जीवन किया तुमने निवाह फिर भी रह गए करके आह   किसका अनुसरण त…

गृहस्थ तप

हिम क्षेत्र के स्वच्छ वातावरण में ठंडी-ठंडी, सांय-सांय सी सीटी बजाती हूई हवाएं, किसी का भी हाड़-माँस कंपकप…

#buttons=(Ok, Go it!) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Learn more
Ok, Go it!