उलझती गई जिन्दगी बदनसीबी रूलाती चली गई। दावा करते थे जो मददगार होने का उन्हीं के हाथों सताती चली गई। हर गिरह ऐसी बंधी कि खुलने का नाम न ले खुल…
Read more »नहीं वह सम्मुख अचरज की न बात मेरी व्यथा से है विमुख मन पर कुठाराघात| मेरी व्यथा का रहा न भान भूल गए मेरा त्याग बलिदान सारी कामनाएं अधोगति को प्राप…
Read more »जीवन का वह क्षण जब खत्म होगा जीवन सारी कामनाएं सारी इच्छाएं अंत कर देगी मरण| सारा संचय- संशय निर्मूल होगी निश्चय ना रहेगी कोई भी चिंता आज की आय, क…
Read more »अस्तित्व पे कुठाराघात अब हुई असहनीय बात आत्याचारिओं को सबक सीखाना है आवाज़ उठाना है सखी आवाज़ उठाना है . समाज में छुपे दरिंदे आस्तीन …
Read more »भूले भटके पथ के राही थी तुम्हारी कौन सी चाह पूरा जीवन किया तुमने निवाह फिर भी रह गए करके आह किसका अनुसरण तुम करते रहे लेते रहे तुम किस…
Read more »हिम क्षेत्र के स्वच्छ वातावरण में ठंडी-ठंडी, सांय-सांय सी सीटी बजाती हूई हवाएं, किसी का भी हाड़-माँस कंपकपा देने के लिए पर्याप्त है, उस …
Read more »
Social Plugin