मेरे घर की चार दीवारें, बटवारे में बटी हुई हैं, पर छत की अब भी है कोशिश, चौबारे न बटने पाएं, छत से ही विद्रोह कर रहीं हैं ,कद से ऊंची दीवारें, अ…
Read more »स्वर्ग में ताले लटक रहे हैं, सारा जग अपराधी है! मानव भटक गया धरती पर, होड़ लगी है गिरने की । भौतिकता के पागलपन में, सुध न रही भव तिरने…
Read more »भले कोशिश करें पर वक़्त-ए-दुश्वारी नहीं जाती । हमारा जिस्म जाता है ये बीमारी नहीं जाती । तुम्हारे सदके हमने दिल हमारा रख दिया लेकिन, तुम्ह…
Read more »न चौबारे, न नुक्कड़, न सफ़र में रहो! वक़्त का तकाज़ा है ज़रा घर में रहो! हवा कातिल है परिंदो तुम्हें मालूम हो, …
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