
वी0 पी0 दिलेन्द्र
निश्छल प्रेम
मेरी जिन्दगी रिश्तों का ठहरा हुआ जल स्पदंन रहित उदास सी तुम आजाओ बरस जाओ प्रेम बूंदो से तरंगि…
मेरी जिन्दगी रिश्तों का ठहरा हुआ जल स्पदंन रहित उदास सी तुम आजाओ बरस जाओ प्रेम बूंदो से तरंगि…
क्या हो गया है आदमी को वो बैचेन क्यों है ? क्या कहीं कुछ दिखने लगा है क्या कुछ और बिकने लगा है वो…
रास्तों से भटक कर मैं खो गया भीड़ में टटोलने लगा मन कहाँ आ गया हूँ मैं बोझ से लगने लगे टूटते से ताने बाने …
दीवारों ने कहा ही कब था तुम उकेरो दर्द भरे चित्र अपना अक्स खोजो मिल जाये कहीं सच्चा कलम कूंची का वो सिरा पक…