मेरी जिन्दगी रिश्तों का ठहरा हुआ जल स्पदंन रहित उदास सी तुम आजाओ बरस जाओ प्रेम बूंदो से तरंगित करदो उठने दो लहरें मैं क…
Read more »क्या हो गया है आदमी को वो बैचेन क्यों है ? क्या कहीं कुछ दिखने लगा है क्या कुछ और बिकने लगा है वो लालायित क्यों है क्यों उठ र…
Read more »रास्तों से भटक कर मैं खो गया भीड़ में टटोलने लगा मन कहाँ आ गया हूँ मैं बोझ से लगने लगे टूटते से ताने बाने बुनने लगा हूँ कोई टूटीफूटी श…
Read more »दीवारों ने कहा ही कब था तुम उकेरो दर्द भरे चित्र अपना अक्स खोजो मिल जाये कहीं सच्चा कलम कूंची का वो सिरा पकड़ कर क्यों उतारे मूरत रंग ही…
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