ना तो कबीर के सबद - रमैनी , ना कबीर की साखी सरीखी , तुकांत नहीं ....अतुकांत लिखी फ़ैज़ के मिसरे सा नमक नहीं , ख्वाज़ा चिश्ती की न इश्क़ ए हक़ी…
Social Plugin