व्यथित अन्तर्मन की सेवित प्रति अभिव्यंजना है। स्वर्ण मृग यथार्थ है प्रतिभास है या कल्पना है।। क्षुधा तृप्ति,ढके तन, आश्रय तक सब सही था स्वर्ण…
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