सुधा गोयल

आजकल औरतें

आजकल औरतें लिख रही हैं कविताएं अपने अनकहे दर्द की व्यथाएं जिसे अकेली ही झेलती रहीं और होंठों ही होंठों में पीती रहीं। आ…

रात भर

पात से बूंद सी आंखें झरती रही रात भर पानी बरसता रहा बिजली कड़कती रही रात-भर बीती बातों का समन्दर उमड़ता रहा रात भर मै…

बेटी के घर

"ओह वसुधा,क्या सारे दिन अम्मा से चिपकी रहती हो।कभी कोई काम मेरा भी कर दिया करो-"झल्ला उठे वर्द्धमान और उनके स…

ऐसे भी कोई जाता है

एकाएक यूँ चले जाने और गायब हो जाने में बड़ा फर्क है। आदमी एकाएक उठकर चल देता है, थोड़ी चहलकदमी करता है,कुछ सोचता …

जेल में है रत्ना

अखबार पलटते पढ़ते नजर 'दहेज की वेदी पर एक और बलि'शीर्षक पर अटक गई। यों तो प्रतिदिन समाचार पत्रों में …

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