सूर्य प्रकाश मिश्र

एक मुट्ठी ओस

कम पड़ेगा बादलों का गाँव सारा एक मुट्ठी ओस लेकर क्या करेंगे   प्राण प्यासे हैं हमारे कोख से ही जी रहे सदिय…

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